नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने FTII पुणे को निर्देश दिया कि वह कलर ब्लाइंड लोगों को फिल्म मेकिंग से जुड़े सभी कोर्स में प्रवेश दे। कोर्ट ने कहा कि फिल्म निर्माण और संपादन, कला का एक रूप है और FTII अपने आप में एक संस्थान है। उसके द्वारा अपने कोर्स में प्रवेश के लिए कलर ब्लाइंड छात्रों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अधिक समावेशी और प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाने और अन्य फिल्म और टेलीविजन संस्थानों को भी कलर ब्लाइंड छात्रों के लिए अपने यहां प्रवेश के लिए दरवाजे खोलने चाहिए। हालांकि कोर्ट ने याची के दाखिले को लेकर आपत्तियों पर अपना हलफनामा दाखिल करने के लिए FTII को अनुमति दी है।
याचिकाकर्ता की ओर से हॉलीवुड के प्रख्यात निर्माता-निर्देशक क्रिस्टोफर नोलान का उदाहरण रखते हुए कहा कि नोलान भी कलर ब्लाइंडनेस के शिकार हैं फिर भी उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्में बनाई हैं। इसके अलावा याची की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कलर ब्लाइंड छात्रों को MBBS में दाखिला देने के फैसले को भी कोर्ट के सामने रखा था।
दरसल पटना के आशुतोष कुमार को 2015 में FTII के फ़िल्म एडिटिंग कोर्स में चयन हुआ, लेकिन मेडिकल जांच में कलर ब्लाइंड होने की वजह उनको प्रवेश नही मिल सका। जिसको आशुतोष ने बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी। जहा पटना हाई कोर्ट ने FTII के प्रवेश नही दिए जाने के निर्णय को नियम मुताबिक मानते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी।
आशुतोष ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में कहा कि FTII अपने 12 पाठ्यक्रमो में से 6 में कलर ब्लाइंड छात्रों को प्रवेश नहीं देता, जो कि भेदभावपूर्ण हैं।
रिपोर्ट-अभिषेक