Parliament Article 105: संसद में दिए गए बयान को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती, क्या है कारण

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Parliament Article 105 : क्या आप जानते हैं कि संसद में दिए गए किसी भी बयान को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती? यह सवाल समझने के लिए हमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 और संसद के कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से जानना होगा। और आज हम आपके इसी सवाल का जवाब देगें।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संसद के दोनों सदन, उनके सदस्य और समितियां अपने कार्यों को अंजाम देने में स्वतंत्र हैं। इस अनुच्छेद के तहत संसद और उसके सदस्य को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त है। इसका उद्देश्य है कि संसद की कार्यवाही स्वतंत्र रूप से हो सके, और किसी भी बाहरी दबाव या हस्तक्षेप से उसे प्रभावित न किया जा सके।

Parliament Article 105

अनुच्छेद 105(1) के अनुसार, संसद के किसी भी सदस्य को संसद या उसकी किसी समिति में कहे गए शब्दों के लिए न्यायालय में उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। इसका मतलब है कि अगर कोई सदस्य संसद में किसी विषय पर बयान देता है या किसी मुद्दे पर मतदान करता है, तो उसे इस कारण से अदालत में नहीं घसीटा जा सकता। यह अधिकार इसलिए दिया गया है ताकि संसद के सदस्य स्वतंत्र रूप से बातों को रख सकें।इस विशेषाधिकार का दूसरा पहलू यह भी है कि संसद में किसी सदस्य द्वारा कहा गया शब्द या किया गया मतदान लोकतांत्रिक संस्थाओं के संचालन का हिस्सा है और वह किसी व्यक्तिगत विवाद या अन्य मुद्दों के रूप में नहीं देखा जा सकता। संसद की कार्यवाही और उसके द्वारा पारित किए गए फैसलों को चुनौती देना लोकतंत्र की उस प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह लगा सकता है, जिसे लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि संचालित करते हैं।

संसद में दिए गए बयान का कानूनी महत्व


हालांकि संसद में दिए गए बयानों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती, इसका यह मतलब ये नहीं है कि संसद के सदस्य या समितियां किसी भी तरह की गलत या अपमानजनक बात बोलने के लिए स्वतंत्र हैं। संसद की कार्यवाही में अनुशासन बनाए रखने के लिए कई नियम और प्रक्रियाएं भी हैं अगर कोई सदस्य संसद के नियमों का उल्लंघन करता है या किसी अन्य सदस्य के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करता है, तो उस पर संसद के भीतर ही कार्रवाई की जा सकती है. इसके लिए संसद के नियमों और आचार संहिता का पालन किया जाता है।

रिकॉर्ड से हटा दी जाती हैं सांसदों की विवादित बातें


लोकसभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम 380 के अनुसार अगर अध्यक्ष को लगता है कि वाद-विवाद के दौरान ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जो अपमानजनक है तो अध्यक्ष अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए। ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से निकाल सकता है।इसके अलावा संसद के नियमों और आचार संहिता के अनुसार सांसद को ध्यान रखना होता है कि वह कोई भी ऐसा शब्द या टर्म न बोलें जो संसद की गरिमा को भंग करे। यही हवाला देते हुए सदन की कार्यवाही के दौरान कई बार सांसदों के भाषणों से कुछ शब्द, वाक्य या बड़े हिस्से भी हटाए जाते रहे। इस प्रोसेस को एक्सपंक्शन कहते हैं। लोकसभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम 380 के तहत ऐसा किया जाता रहा।

एक्सपंक्शन का अधिकार किसके पास होता है


स्पीकर के पास यह अधिकार है कि वे अपने विवेक से सदन में बोले गए असंसदीय या आपत्तिजनक शब्दों या वाक्यों को हटा सकते हैं. अगर कोई सांसद ऐसा शब्द बोले, जो सदन की मर्यादा को तोड़ता हो, तो स्पीकर उस शब्द या वाक्य को रिकॉर्ड से हटा सकते हैं। इसके अलावा, सत्ताधारी पार्टी या किसी अन्य सदस्य के आपत्ति उठाने पर भी स्पीकर इस पर निर्णय ले सकते हैं।

विवादित बयान देने वालों पर क्या एक्शन हो सकता है


वैसे तो सदन में अपनी बात रखने या किसी मुद्दे का विरोध करने की पूरी आजादी है, लेकिन इस दौरान भाषा का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 105(2) के अनुसार, किसी भी सदन में कही गई बात पर कोर्ट में कार्रवाई नहीं हो सकती। मेंबर ऑफ पार्लियामेंट को केवल उसकी पार्टी या विपक्षी पार्टी लताड़ लगा सकती है। इसके अलावा कारण बताओ नोटिस दिया जा सकता है। सही वजह न दिखने पर पार्टी संबंधित नेता पर कार्रवाई कर सकती है।

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