11 अप्रैल 2025 को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हंसराज कॉलेज के प्रांगण में एक अद्वितीय संगोष्ठी आयोजित हुई—एक ऐसा आयोजन जो इतिहास के उस स्वर्णिम अध्याय को पुनः जीवंत करने आया था, जिसे अहिल्याबाई होलकर के नाम से जाना जाता है। राष्ट्र सेविका समिति, मेधाविनी सिंधु सर्जन (दिल्ली प्रांत) और शरण्या के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ने भारत की उस वीरांगना के जीवन, कार्य और विचारों पर प्रकाश डाला, जो मराठा साम्राज्य की एक न्यायप्रिय शासिका के रूप में पहचानी गईं।
कार्यक्रम का आरम्भ तकनीकी सत्र से हुआ, जिसमें देश भर से आए लगभग 150 प्रतिभागियों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। इन प्रस्तुतियों में अहिल्याबाई के सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण, मंदिर निर्माण, धार्मिक सहिष्णुता और प्रशासनिक कुशलता जैसे विषयों पर गहन विचार-विमर्श किया गया।संगोष्ठी का उद्देश्य अहिल्याबाई होलकर के बहुआयामी व्यक्तित्व और उनके युगांतकारी कार्यों की समकालीन प्रासंगिकता को उजागर करना था।
द्वितीय सत्र, समापन सत्र का उद्घाटन दीप प्रज्वलन तथा एकल गीत से हुआ। मेधाविनी सिंधु सृजन की प्रांत संयोजिका प्रो. निशा राणा जी ने मेधाविनी के उद्देश्य को बताते हुए कहा कि यह संवेदना के सूक्ष्म तंतुओं से बहनों को जोड़ता है।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रो. सुषमा यादव( सम कुलपति हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय) थीं।
प्रो. सुषमा यादव ने अहिल्याबाई होलकर के प्रशासनिक कौशल और उनकी न्यायप्रियता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका शासन भारतीय इतिहास में सुशासन का उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा की ‘उनका शासन शासको के लिए आदर्श है और वे मर्यादा प्रिय शासिका थी।
मा. प्रदीप अग्रवाल जी (संस्थापक अध्यक्ष ग्लोबल सिग्नेचर) ने कहा की अहिल्याबाई का शासन इसलिए विशिष्ट था क्योंकि वह ‘सबका साथ सबका विकास की नीति’ पर चलता था।उन्होंने अपनी प्रजा के दिल विश्वास लिया और हर कार्य को पूर्ण जिम्मेदारी से किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षा मा.बांसुरी स्वराज ने कहा की राष्ट्रीय निर्माण की नींव मातृ शक्ति रख सकती है। उनका जीवन एक जीवनी नहीं है बल्कि महाकाव्य है । उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चेतना का जीवित प्रतिबिंब है अहिल्याबाई होलकर का जीवन।
प्रान्त प्रचरिका सुश्री विजया शर्मा जी, प्रांत कार्यवाहिका श्रीमती सुनीता भाटिया जी,मा. आशा शर्मा, मा. राधा मेहता जी, प्रांत संयोजिका चारु कालरा जी तथा शरण्या अध्यक्षा अंजु आहूजा जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
इस संगोष्ठी से लगभग 500 प्रतिभागी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े और और लाभान्वित हुए। अहिल्याबाई जी के अवदानों पर विस्तृत चर्चा से प्रभावित होकर लाभान्वित हुए। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों और शोधकर्ताओं को प्रमाण पत्र वितरित किए गए।
इस कार्यक्रम में अहिल्याबाई होलकर के जीवन पर आधारित चित्रकला प्रदर्शनी ने सभी को आकर्षित किया। अहिल्याबाई जी के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों को चित्रों के माध्यम से देखना एक सुखद अनुभव था।
यह कार्यक्रम अहिल्याबाई होलकर के जीवन और कार्यों को समझने और उनसे प्रेरणा लेने में अत्यंत सार्थक सिद्ध हुआ।