Caste System: नई दिल्ली: “लगभग हर कोई जो भारत के बारे में कुछ भी जानता है, उसने जाति-व्यवस्था बारे में सुना है; भारत में लगभग हर बाहरी व्यक्ति और कई लोग इसकी निंदा करते हैं या समग्र रूप से इसकी आलोचना करते हैं । शायद ही भारत में कोई बचा हो जो इसके सभी वर्तमान प्रभावों और विकासों में इसका अनुमोदन करता है, हालांकि निस्संदेह कई अभी भी है जो इसके मूल सिद्धांत और बड़ी संख्या में हिंदुओं को स्वीकार करते हैं अपने जीवन में इसका पालन करते हैं ।” (रिस्ले)जाति भारतीय समाज का एक अभिन्न हिस्सा है । जब भी हम अपने सामाजिक और भारतीय समाज और संस्कृति की बात करते है तो जाति कहीं ना कहीं अपना स्थान प्रदर्शित करती है । समय -समय पर जाति उन्मूलन की कोशिश की जाती रही है परंतु इसके प्रभाव को पूरी तरह से कम नहीं किया जा सका। गाँधी मुख्य रूप से अस्पृश्यता के विरोध मे देखे जाते है परंतु जाति व्यवस्था के विरोध मे कम देखे जाते हैं । हम कह सकते है गाँधी अपने पूरे स्वतंत्रता आंदोलन के जीवनकाल मे अस्पृश्यता का सम्पूर्ण उन्मूलन होना चाहिए ऐसा उनका हमेशा मत देखने को मिलता है। गाँधी जी ब्राहमण और अछूत को एक ही नजर से देखते हैं और दोनों हो उनके लिए समान रहे है । गांधी का मानना था की जाति के आधार पर कोई भी छोटा या बड़ा नहीं है । गाँधी जी जाति को एक सामाजिक व्यवस्था मानते थे और ऐसी सामाजिक व्यवस्था को अंत करने की भी पैमाइश करते है, और इस व्यवस्था के कारण सामाजिक और आर्थिक भिन्नताएं अधिक प्रबल हो जाती हैं । महात्मा गाँधी ने जाति को खत्म करने के लिए आलोचनात्मक दृष्टिकोण विकसित करने की बात करते है। वे कहते है कि जाति व्यवस्था को आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है और जाति को जोड़ने वाली कड़ी पर प्रहार करने की आवश्यकता है। जैसे गाँधी जब मात्र 18 साल के हुए तो उन्होंने विदेश यात्रा की जब भारतीय जाति व्यवस्था में माना जाता था की समुद्र पार जाना जाति व्यवस्था के विरुद्ध है । गाँधी जी हमेशा ही सामाजिक सुधार के माध्यम से जाति से संबंधित कुरीतियों को खत्म करने की बात करते है , जबकि वही पर भीमराव अंबेडकर जाति व्यवस्था को हर संभव तरीके से खत्म करने की बात करते हैं । वास्तव में अंबेडकर जाति व्यवस्था को एक व्यवहार और विचार मानते थे जिसका उन्मूलन अनिवार्य है, यह कोई मौलिक आकार नहीं है बल्कि व्यक्ति के विचार और व्यवहार मे व्याप्त है इसलिए इसे वैचारिक और व्यवहारिक स्तर पर खतम करने की जरूरत है और इसके लिए समाज के हर स्तर पर इस पर प्रहार किया जाना चाहिए ।
जाति व्यवस्था पर गाँधी का दृष्टिकोण
हटन, के अनुसार भारत में जाति व्यवस्था एक संस्था बन चुकी है और यह संस्थागत तरीके से अपना काम भी कर रही है, इसका मुख्य कारण यह है की यह हजारों सालों से चली आ रही व्यवस्था है जो की भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का अहम हिस्सा हो चुकी है । जाति को रिस्ले द्वारा परिभाषित किया गया है, “परिवारों का संग्रह या एक समान नाम वाले परिवारों के समूह जो आमतौर पर या विशिष्ट व्यवसायों के साथ जुड़े हो , एक से आम वंश का दावा पौराणिक पूर्वज – मानव या दिव्य, उसी का पालन करने का दावा करते हैं पेशेवर विचारों और उन लोगों द्वारा माना जाता है जो इसे प्रभाव देने के लिए सक्षम हैं एक एकल सजातीय समुदाय बनाने के रूप में यह एक राय है।
महात्मा गाँधी भारतीय समाज व्यवस्था के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं को भली-भांति समझते थे। बचपन से ही दोनों का प्रत्यक्ष अनुभव गाँधी ने किया था और समय के साथ भारतीय समाज के सकारात्मक पहलुओं को उभरने उनका विस्तार करने सम्पूर्ण भारतीय समाज में लागू हो इस दिशा में उनके प्रयास लगातार बढ़ते ही गए एक उदाहरण से समझे गाँधी के जाति को गलत समझने के उसे खत्म करने के विषय में उनकी कोशिश दक्षिण अफ्रीका से ही देखते हैं पर अपने जीवन के अंतिम समय में वे उस विवाह में भी शामिल नहीं होते थे जो जाति तोड़ने के विचार से ना की गई हो और वे अपने पुत्रवत सचिव महादेव भाई देसाई के बेटे नारायण के विवाह में शामिल नहीं होते हैं क्योंकि विवाह में दोनों सामान्य जाति के थे । गाँधी जी ऐसी किसी विवाह में शामिल ही नहीं हुए जेपी अतर्जातीय ना हो ।
गाँधी जी जाति के खिलाफ थे वह ऐसे पता चलता है की वे वर्धा महाराष्ट्र मे स्थित स्वामी नारायण मंदिर मे हरिजनों के प्रवेश को लेकर भी 1929 मे आन्दोलन किया और उनकों मंदिर मे प्रवेश दिलाने मे सफल रहे । यह इस बात का द्योतक है की गाँधी जाती व्यवस्था को खत्म करने के अलग अलग प्रयासों के माध्यम से हमेशा प्रयत्न करते रहे । गाँधी जी के जाति व्यवस्था के प्रति उनके विचार को अलग अलग विचारकों के भिन्न भिन्न मत है । गाँधी जी को मानने वाले उनके सकरात्मक विचार और पर्यास पर बल देते है और मानते है की गाँधी ने अपने कामों के द्वारा जाति को खत्म करने का भरसक प्रयास किया लेकिन वहीं दूसरी तरफ गाँधी के आलोचकों का मानना है की वी जाती व्यवस्था के अंतर्गत केवल अस्पृश्यता के खिलाफ थे ना की पूरी जाति व्यवस्था के ।
संदर्भ:i. Hutton, J.H., Caste in India, London: Oxford University Press, 1961, p. 182.
ii. Risley, H.H., The People of India, Calcutta: Thacker, Spink & Co., 1915, p. 67.
Written by- Dr. Dinesh Kumar
Assistant Professor
Department of History
Sri Aurobindo College
इसे भी पढे़:-Maha Kumbh Security: जल, थल और नभ तीनों स्तर पर होगी श्रद्धालुओं की सुरक्षा: डीजीपी