Kashi-Tamil Sangam: काशी-तमिल संगम समारोह, काशी और तमिलनाडु के रिश्तें का इतिहास

Kashi-Tamil Sangam

Kashi-Tamil Sangam: IIT मद्रास की ओर से वाराणसी में आयोजित होने जा रहा है ‘काशी-तमिल संगम’ यह कार्यक्रम तमिलनाडु और काशी के बीच सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित करेगा।

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काशी तमिल संगम की शुरुआत भारत सरकार ने साल 2022 में की थी। इस आयोजन में कई तरह के लोग जैसे छात्र, किसान, बुद्धिजीवी शामिल होंगे। कार्यक्रम का मकसद उत्तर भारत (काशी) और दक्षिण भारत (तमिलनाडु) के लोगों को एक साथ लाना, लोगों को एक-दूसरे की संस्कृति और परंपराओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद करना है। उत्तर से दक्षिण भारत को जोड़ने वाली दो संस्कृतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। देश में क्षेत्रीयवाद की भावनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। राजनीतिक लाभ के लिए इन भावनाओं को भड़काया जा रहा है और सामाजिक ताने-बाने को कमजोर किया जा रहा है। ऐसे में एक सांस्कृतिक आयोजन कितना प्रभावी होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

काशी तमिल संगम में इस बार क्या होगा खास


काशी तमिल संगम का आयोजन इस बार भी वाराणसी के ‘नमो घाट’ पर होगा और इसकी मेजबानी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय करेगा। यहां पर कई तरह के कार्यक्रम होंगे, जैसे कि सेमिनार, सांस्कृतिक कार्यक्रम. साथ ही प्रतिभागियों को वाराणसी, प्रयागराज और अयोध्या जैसे महत्वपूर्ण स्थानों का भ्रमण कराया जाएगा. सबसे खास बात यह है कि प्रतिभागियों को महाकुंभ का अनुभव भी मिलेगा। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने काशी तमिल संगम को ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ पहल का हिस्सा बताया है. यह तमिलनाडु और काशी के बीच के सांस्कृतिक संबंधों का जश्न मनाता है।

काशी और तमिलों के बीच कैसे जुड़ा है संबंध?


शिक्षा मंत्रालय की वेबसाइट ‘एकभारत’ के मुताबिक, भारत में कई जगहों पर प्राचीन ज्ञान मौजूद है लेकिन तमिलनाडु और काशी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. इन दोनों जगहों से बहुत सारा ज्ञान निकला है- जैसे कि बुद्धि से जुड़ा ज्ञान, संस्कृति, धर्म और कला. भले ही काशी और तमिलनाडु दूर हैं, लेकिन सदियों से इन दोनों के बीच बहुत गहरे और मजबूत संबंध रहे हैं. दोनों क्षेत्रों के बीच आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान सदियों से होता रहा है. कई साधु-संतों और विद्वानों ने इन दोनों क्षेत्रों में आकर ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया है. व्यापार के माध्यम से भी दोनों क्षेत्रों के बीच संबंध मजबूत हुए हैं. इन संबंधों को फिर से खोजने से ज्ञान के नए क्षेत्रों में विकास होगा.

‘काशी-तमिल संगम’ का क्या है इतिहास


तमिलनाडु से लोग सदियों से काशी आते रहे हैं, लेकिन 17वीं शताब्दी में हमारे पूर्वजों ने यहां बसने के प्रयास शुरू किए थे. उस समय तमिल संत परंपरा के एक प्रमुख कवि और शैव संत कुमारगुरुपरार ने मुगल साम्राज्य से जमीन मांगी और लगभग 1658 में कुमारस्वामी मठ की स्थापना की थी. तमिलनाडु के कई संगठनों, जैसे श्री काशी नट्टुकोट्टई नागरा सत्त्रम ने भी काशी से जुड़ाव बनाया. उन्होंने 209 सालों तक काशी विश्वनाथ मंदिर में भोग-प्रसाद की व्यवस्था की, यानी मंदिर में भोजन और प्रसाद चढ़ाया.
मध्यकाल में कुछ समय के लिए तमिलनाडु से लोगों का काशी आना कम हो गया था. लेकिन काशी का आकर्षण इतना था कि 14वीं सदी में तमिल राजा विक्रम पांडियन ने तमिलनाडु में ही ‘शिवकाशी’ नाम की जगह बसाई. इसके बाद, फिर से तमिलनाडु से लोग काशी आने लगे. तिरुवदुथुरै आधेनाम भी काशी आए. कई महान कवि जैसे सुब्रमण्य भारती और संगीतकार जैसे मुथुस्वामी दीक्षितार ने भी काशी से खुद को जोड़ा. जब 1934 में कांची कमकोटी पीठ के शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखर सरस्वती काशी आए, तो तमिल लोगों का आकर्षण और भी बढ़ गया.

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