Mahakumbh 2025: वो कौन सा दानवीर राजा था जो हर 5 साल में कुंभ में लुटा देता थे अपना सारा खजाना

Mahakumbh 2025:

Mahakumbh 2025: महाकुंभ के दौरान दान करने की परंपरा बेहद पुरानी है, लेकिन क्या आप जानते हैं ये कैसे शुरु हुई। कुंभ का सबसे बड़ा दानवीर कौन है।

Mahakumbh 2025

महाकुंभ में स्नान के साथ ही कुछ चीजों का दान बेहद शुभ माना जाता है। अन्न का दान, वस्त्रों का दान, गंगा जल का दान, धन का दान, तिल और गुड़ दान। वहीं महादान के रूप में गाय का दान या गौशालाओं में अनाज का दान करना महाकुंभ के बाद बहुत ही पुण्यदायक होता है। ऐसा कहा जाता है कि दान आपके कई कष्टों को दूर करने के साथ ही आपको सुख-शांति भी प्रदान करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं भारत का एक राजा जो हर 5 साल में प्रयागराज के कुंभ में अपनी संपति दान करता था जी हां हम बात कर रहे है सम्राट हर्षवर्धन की। वो तब तक दान करते थे जब तक उनके राजकोष का सब कुछ खत्म न हो जाए।

राजा हर्षवर्धन का कुंभ में दान


इतिहासकारों की माने तो 16 वर्ष की आयु में राजा बने हर्षवर्धन ने कुंभ मेले की शुरुआत कराई थी। सम्राट हर्षवर्धन 7वीं शताब्दी के एक महान भारतीय शासक थे जो अपनी उदारता, धर्मपरायणता और प्रजा के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं। वे 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक शासन करते रहे और उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान उत्तर प्रदेश) थी। आज कुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला कहलाता है। भारत का आखिरी महान सम्राट हर्षवर्धन कुंभ के दौरान जमकर दान करते थे। लेकिन ये बात कम लोग जानते हैं कि वो दान से पहले भगवान सूर्य, शिव और बुध की उपासना किया करते थे। ऐसा बताया गया है कि वो दान को चार भागों में बांटते थे, पहला शाही परिवार फिर सेना/प्रशासन इसके बाद धार्मिक निधि और अंत में गरीबों के लिए वो अपना सारा धन लुटा दिया करते थे। साक्ष्यों के आधार पर इस 2000 वर्ष पुराने धार्मिक मेले का महत्व समय के साथ-साथ और भी बढ़ता जा रहा है।

कुंभ मेले में दान की परंपरा


सम्राट हर्षवर्धन हर पांच साल में कुंभ मेले के अवसर पर संगम में अपनी समस्त संपत्ति दान कर देते थे। कहा जाता है कि वह दान करने के बाद केवल एक वस्त्र रख लेते थे। उनके दान का उद्देश्य धर्म और समाज की भलाई करना था। ये परंपरा उनके न्यायप्रिय शासन और समाज के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है। राजकोष दान करने की कहानियां बेहद दिलचस्प हैं। राजा हर्षवर्धन ने ये सुनिश्चित किया कि उनकी संपत्ति से धर्म और समाज को लाभ पहुंचे। चीनी यात्री ह्वेनसांग जो उनके शासनकाल में भारत आए थे उन्होने भी हर्षवर्धन के इस दान का उल्लेख किया है। उनके अनुसार सम्राट ने अपनी संपत्ति तब तक दान की जब तक राजकोष पूरी तरह खाली नहीं हो गया।

राजा हर्षवर्धन का धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान


पुष्यभूति वंश के राजा हर्षवर्धन का साम्राज्य उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्सों तक फैला हुआ था। उन्होंने थानेश्वर और कन्नौज से शासन किया और अपने शासनकाल में राजनीतिक और सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा दिया। उनकी उदारता और धर्मपरायणता ने उन्हें इतिहास में अमर बना दिया। हर्षवर्धन शैव, बौद्ध और वैदिक परंपराओं का समान रूप से सम्मान करते थे। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में भी योगदान दिया। उनकी उदारता और धर्मप्रेम ने उन्हें भारतीय इतिहास में अद्वितीय स्थान दिया। सम्राट हर्षवर्धन भारतीय इतिहास में केवल एक शासक ही नहीं, बल्कि एक ऐसा उदाहरण हैं, जिन्होंने धर्म, परोपकार और समाजसेवा को अपने शासन का केंद्र बनाया। कुंभ में उनकी दान की परंपरा उनकी उदारता और सामाजिक चेतना का प्रमाण है।

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