Mahakumbh Mahila Naga Sadhu: आज हम आपको महाकुंभ के महिला नागा साधुओं की ऐसी रहस्यमयी दुनिया के बारे में बतायेंगे। जिसे जानने की उत्सुकता हर श्रद्धालु के मन में होती है। महाकुंभ के धार्मिक महत्व से लेकर अखाड़ों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तक, नागा साधुओं की परंपरा और उनके अनुशासन की अनोखी जानकारी आपको मिलेगी। यहां आपको महिला नागा साधुओं की रहस्यमयी दूनिया के बारे में भी जानने को मिलेगा।यह आयोजन सिर्फ आस्था और परंपरा का उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारतीय सनातन संस्कृति की गहराइयों में उतरने का एक अवसर भी है।
Mahakumbh Mahila Naga Sadhu:
महाकुंभ में 13 अखाड़ों का प्रमुख स्थान है, जिन्हें संत समाज का आधार माना जाता है। इनमें शैव और वैष्णव परंपरा के नागा साधु प्रमुख हैं। अखाड़ों की स्थापना का उद्देश्य धर्म और संस्कृति की रक्षा के साथ-साथ समाज को मार्गदर्शन देना भी है। सभी अखाड़े में धर्म ध्वजा का खास महत्व है, जो उनकी पहचान और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक होती है। नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और अनुशासन पूर्ण होती है। दीक्षा के दौरान साधु मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं और अपने श्राद्ध कर्म स्वयं करते हैं। नागा साधु 24 घंटे में सिर्फ एक बार भोजन करते हैं और अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं। उनके शरीर पर लगाई जाने वाली भस्म सांसारिक बंधनों से मुक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
महिला नागा साधुओं की भी है रहस्यमयी दुनिया
महाकुंभ में नागा साधुओं की तरह महिला नागा साधुओं का जीवन भी उतना ही अनोखा और रहस्यमय है। वे भी अपने जीवन को पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित कर देती हैं और गृहस्थ जीवन को त्याग कर कठोर तपस्या में लीन रहती हैं। यहां आप महिला नागा साधुओं के जीवन, उनके नियम, दिनचर्या और उनकी तपस्या के अनछुए पहलुओं को जान पाएंगे।
मोह-माया से दूर, कठिन तपस्या
महिला नागा साधु सांसारिक मोह-माया से दूर रहती हैं। उनका पूरा दिन पूजा-पाठ और साधना में व्यतीत होता है। उनकी दिनचर्या शिव, पार्वती और माता काली की भक्ति से शुरू होकर आध्यात्मिक साधना पर ही समाप्त होती है। नागा साधु बनने से पहले उन्हें 6-12 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। गुरु को यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि वे ईश्वर के प्रति समर्पित और कठिन साधना के योग्य हैं। नागा साधु बनने से पहले जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन कराना अनिवार्य होता है।
महिला नागा साधुओं के लिए दिगंबर (निर्वस्त्र) रहना निषिद्ध
महिला नागा साधुओं के लिए दिगंबर (निर्वस्त्र) रहना निषिद्ध है। वे गेरुए रंग का एक बिना सिला कपड़ा पहनती हैं, जिसे ‘गंती’ कहा जाता है। माथे पर तिलक लगाना और पूर्ण रूप से सादगी से रहना उनके जीवन का हिस्सा है।
क्या खाती है महिला नागा साधु
महिला नागा साधु ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शिवजी का जाप करती हैं, दोपहर में भोजन के बाद भी साधना करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की आराधना में वक्त बिताती हैं। उनका भोजन अत्यंत सादा होता है, जिसमें कंदमूल, फल, जड़ी-बूटियां और पत्तियां शामिल होती हैं।
क्या है ‘माई बाड़ा’
महाकुंभ के दौरान महिला नागा साधुओं के लिए अखाड़ों में विशेष स्थान बनाए जाते हैं, जिन्हें ‘माई बाड़ा’ कहा जाता है। यहां वे बाकी साध्वियों के साथ रहती हैं और शाही स्नान में हिस्सा लेती हैं। महिला नागा साधु न सिर्फ शिव भक्ति का अद्भुत उदाहरण हैं, बल्कि उनकी कठिन तपस्या और साधना समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। महिला नागा साधुओं की यह रहस्यमयी और प्रेरणादायक दुनिया भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा की गहराइयों को समझने का मौका देती है।
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