Mahakumbh Naga Sadhu: नागा साधु में पिंडदान का क्या है महत्व, और क्या है इसकी प्रक्रिया

Mahakumbh Naga Sadhu

Mahakumbh Naga Sadhu: इंसान का शरीर जब शांत होता है, आत्मा का परमात्मा में मिलन होता है तब हिंदू मान्यताओं के अनुसार जीव का पिंडदान किया जाता है।

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वहीं संन्यासी और नागा संन्यासियों की बात करें तो यह लोग जीते जी खुद का पिंडदान करते हैं। बल्कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी समाधि लगा दी जाती है। उनकी चिता को आग नहीं दी जाती है क्योंकि, ऐसा करने पर दोष लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि, नागा साधु पहले ही अपना जीवन समाप्त कर चुके होते हैं। अपना पिंडदान करने के बाद ही वह नागा साधु बनते हैं इसलिए उनके लिए पिंडदान और मुखाग्नि नहीं दी जाती है। उन्हें भू या जल समाधि दी जाती है।

पिंडदान की कब और किसने की शुरुआत की


गरुड़ पुराण के अनुसार, पिन धन गयाजी की शुरुआत भगवान राम ने की थी। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम, भगवान सीता और भगवान लक्ष्मण ने यहां आकर अपने पिता राजा दशरथ को पिंडदान समर्पित किया था। यह भी कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान इस स्थान पर पिंडदान करने से पूर्वज स्वर्ग जा सकते हैं।

पिंडदान में गया का क्या है महत्व


हिंदू धर्म में गया में पिंडदान की एक अलग मान्यता है। गया में पिंडदान इसलिए किया जाता है क्योंकि वहां एक फल्गु नदी है, उसका बड़ा महत्व है। हालांकि मां गंगा और फल्गु नदी का महत्व बराबर का होता है. फल्गु के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि यहां पर कामधेनु को पकड़कर मुक्ति हो जाती है, वहीं उनका कहना है कि गंगा में जब पिंडदान होते हैं तो वहां कहा जाता है कि यह कामधेनु स्वरूप है, गंगा भी मोक्ष दायनी है और बैकुंठ का द्वारा मिलता है। इसलिए मां गंगा के तट पर भी लोग पिंडदान करते हैं। वहीं गया को लेकर के शास्त्रों में एक अलग विशेष स्थान दिया गया है।

क्या पिंडदान के बाद लोग 84 लाख योनियों में नहीं जाते


पंचायती निरंजनी अखाड़ा प्रमुख महामंडलेश्वर प्रेमानंद पुरी जी महाराज कहते हैं कि, पिंडदान से जीव को मुक्ति मिल जाती है और उसका 84 लाख योनियों में भटकना बंद हो जाता है। जिसका क्रिया विधान सब सही से हुआ उनका कहीं पुनर्जन्म हमने नहीं सुना है। आज तक अलग-अलग देश मिलाकर लगभग 40 देश में भ्रमण किया, लगभग 4 लाख किलोमीटर की यात्रा की पर आज तक कभी किसी पुनर्जन्म की बात नहीं सुनी। उन्होंने कहा हमारे सनातन की जो परंपरा है वह इतनी शास्त्रयुक्त है और इतनी वैज्ञानिक है। क्योंकि हमारे शास्त्रों को ऋषि मुनि वैज्ञानिकों ने शोध करके इसे बनाया है और उन मंत्रों से जब क्रिया की जाती है तो जीव की मुक्ति हो जाती है।

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