गौतमबुद्धनगर, यूपी। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस ने एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इन दोनों पार्टियों ने सामाजिक और जातिगत समीकरण के आधार पर गठबंधन कर अपनी जीत पक्की समझ ली थी। लेकिन गैर यादव OBC और दलित वोट इन दोनों के खिलाफ चले गये। इसमें सबसे बड़ा खेल यह हुआ कि इन दोनों पार्टीयों के मतदातोओं ने सिर्फ अपनी अपनी पार्टी के प्रत्याशियों या अपनी जाति के प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान किया, न कि गठबंधन के पक्ष में । इसका नतीजा यह हुआ कि तीनों हीं पार्टीयों के अधिकांश प्रत्याशी चुनाव हार गये और वही गैर यादव OBC और दलित वोट पाकर बीजेपी ने प्रचंड बहुमत हासिल कर लिया। इनमें से 298 पर सपा तथा 105 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे ।
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को रिकार्ड 325 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं अकेले बीजेपी को 312 सीटें जबकि अन्य पार्टियों की बुरी हार हुई थी.2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए गठबंधन यानि बीजेपी प्लस को कुल 325 सीटें मिली थी. इसमें से अकेले बीजेपी ने 384 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिसमें 312 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं बीजेपी गठबंधन की अन्य दो पार्टियों में अपना दल (सोनेलाल) ने 11 सीटों में नौ सीटें और भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी ने आठ में से चार सीटें जीती थीं. वहीं मुख्य विपक्षी दल के रूप में सपा और कांग्रेस को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था. तब इस गठबंधन को मात्र 54 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस को चुनाव में 114 सीटों में केवल सात सीटों पर जीत मिली थी, वहीं समाजवादी पार्टी को 311 सीटों में से केवल 47 सीटों पर जीत मिली. इन दोनों गठबंधनों के अलावा बहुजन समाजवादी पार्टी को भी 403 सीटों में से मात्र 19 सीटों पर संतोष करना पड़ा. तब बसपा के कई दिग्गज चुनाव हार गए थे. इसके अलावा रालोद जो इस बार सपा के साथ गठबंधन में है उसे 2017 विधानसभा चुनाव में मात्र एक सीट पर जीत मिली. वहीं तीन निर्दलीय उम्मीदवारों सहित कुल छह सीटें अन्य के खाते में गई थी.
लोकसभा चुनाव 2019 में नरेंद्र मोदी लहर के चलते सूबे में सपा-बसपा और रालोद गठबंधन भी कोई कमाल नहीं दिखा सका। उत्तर प्रदेश में गठबंधन से सबसे ज्यादा फायदे में जहां बसपा रही। वहीं सपा और रालोद को झटका लगा । शून्य से खाता खोलते हुए बसपा 10 सीटों पर पहुंच गई जबकि सपा पांच सीटों पर ही सिमट कर रह गई । सपा-बसपा का साथ मिलने के बावजूद रालोद का एक बार फिर खाता तक नहीं खुल सका।
वर्षों तक एक-दूसरे की कट्टर विरोधी रही सपा-बसपा, अपना-अपना वजूद बचाए रखने के लिए अबकी गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी थी। पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए गठबंधन का गणित काफी मजबूत भी दिख रहा था। दोनों पार्टियों के नेताओं के दावे के साथ ही राजनीति के जानकारों का मानना था कि सपा-बसपा गठबंधन भाजपा को चित करने में सक्षम रहेगा लेकिन लोकसभा की 80 सीटों में से गठबंधन के तहत 38 पर लडऩे वाली बसपा जहां सिर्फ 10 सीटें जीतने में कामयाब रही वहीं सपा 37 सीट में से सिर्फ पांच पर ही जीती। तीन सीट पर लडऩे वाली रालोद का एक बार फिर खाता तक नहीं खुल सका। गठबंधन ने अमेठी और रायबरेली सीट को कांग्रेस के लिए छोड़ा था लेकिन कांग्रेस, अमेठी सीट को नहीं बचा सकी।
अबकी बार 2022 के विधानसभा चुनाव में गैर यादव OBC और दलित वोट का रुख क्या होगा, ये स्पष्ट नही हो रहा है। लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्या के बीजेपी छोड़ने और समाजवादी पार्टी में जाने के बाद मौर्य-कुशवाहा-शाक्य और सैनी वोटरों का रुख यही बता रहा है कि चाहे वो सपा गठबंधन हो, बीजेपी गठबंधन हो या बसपा…….इनका वोट अपनी जाति के प्रत्याशी को हीं मिलने वाला है। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस बात को काफी हाईलाईट किया था कि अगर बीजेपी को बहुमत मिला तो केशव प्रसाद मौर्या हीं सीएम बनेंगे। इस बात से मौर्य-कुशवाहा-शाक्य और सैनी जाति के ज्यादातर वोटरों ने बीजेपी का साथ दिया था।
लेकिन इसबार की कहानी उससे अलग है। योगी आदित्यनाथ को पहले हीं सीएम का चेहरा घोषित किया जा चुका है, इसलिये मौर्य-कुशवाहा-शाक्य और सैनी जातियां खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं और उनमें किसी भी दल के समर्थन के प्रति कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा है। ठीक उसी तरह इन वोटरों को पहले से हीं पता है कि समाजवादी पार्टी में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्या को भी सीएम नहीं बनाया जायेगा। इसलिये मौर्य-कुशवाहा-शाक्य और सैनी जातियों के वोटरों में समाजवादी पार्टी के प्रति भी बहुत लगाव नहीं दिखाई दे रहा है। हालांकि समाजवादी पार्टी में केशवदेव मौर्य भी पहले से ही हैं। इसके अलावा बाबू सिंह कुशवाहा की जनअधिकार पार्टी का सीमित क्षेत्रों तक सीमित होने का कारण उनको भी इन जातियों के वोटरों का पूरा फायदा मिलता नहीं दिख रहा।……यही कारण है कि इस बार ये कहा जा रहा है कि 2022 में यूपी का ताज किसके सिर पर बंधेगा, ये यूपी के गैर यादव OBC और दलित वोटर तय करेंगे।
रिपोर्ट-धर्मेन्द्र कुमार सिंह