संघ के चहेते रहे अजय राय को कांग्रेस ने क्यों सौंपी उत्तर प्रदेश की कमान?

लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश संगठन में बड़ा बदलाव किया है। कांग्रेस ने बृजलाल खबरी की प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी कर दी और उनकी जगह 5 बार के विधायक रहे अजय राय को उत्तर प्रदेश संगठन की कमान सौंप दी है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के बाद अजय राय वाराणसी के दूसरे नेता हैं जिन्हें कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। इस तरह कांग्रेस ने पूर्वांचल पर फोकस कटे वोटों को साधने की कवायद की है।

अजय राय की बात करें तो 80 के आखिरी दशक में अपनी सियासी पारी का आगाज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से किया था। बीजेपी के टिकट पर विधायक और मंत्री रहे।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की कमान संघ के साए में पले बढ़े और बीजेपी से राजनीतिक बुलंदियों पर पहुंचने वाले अजय राय के हाथ में सौंप दी।

अजय राय भूमिहार समुदाय से आते हैं और पूर्वांचल के सियासत में एक जाना माना चेहरा है। वह मूल रूप से गाजीपुर के रहने वाले हैं लेकिन उन्होंने अपनी सियासी कर्मभूमि वाराणसी को तीन दशक से बना रखा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ 2014 और 2019 में वाराणसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ चुके। अजय राय एक समय भाजपा में रहे हैं। अजय राय भले ही 1996 में विधायक बने हो लेकिन उन्होंने उसे काफी पहले एबीपी से जुड़े हुए थे। अजय राय हिंदुत्व की आक्रामक राजनीति किया करते थे क्योंकि उनकी सियासी अदावत बाहुबली मुख्तार अंसारी से थी।

संघ के अहम पदों पर रहे नागेंद्र नाथ त्रिपाठी और महेंद्र कुमार ने ही अजय राय को एबीपी में शामिल कराया था। उसके बाद संघ के राजेंद्र कुमार सिंह ने अजय राय को सियासी तौर पर आगे बढ़ाने का काम किया था । प्रयागराज के केपी ग्राउंड में संघ प्रमुख आए थे तो अजय राय ने भी उस कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। संघ के तीनों नेता ने अजय राय को वाराणसी की सियासत में स्थापित किया। संघ और बीजेपी वाराणसी में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही थी तो अजय राय तरह से दोनों एक दूसरे के खेवनहार बने।

वाराणसी में एबीपी के कार्यालय को स्थापित कराने में अजय राय की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। वाराणसी में एबीपी का कार्यालय पहले बरनवाल भवन हुआ करता था जिसे अजय राय ने ही कब्जे से मुक्त करवाकर एबीपी के दफ्तर के रूप में तब्दील किया था एबीपी के रास्ते में अजय राय बीजेपी एंट्री की और 1996 में पहली बार विधायक चुने गए इसके बाद उन्होंने पलटकर नहीं देखा सियासी बुलंदी को छूते गए और यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए।

अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय की हत्या कर दी गई थी जिसके बाद आरोपी मुख्तार अंसारी पर जिसके आरोप लगे थे इसके बाद नजर आए ने बीजेपी के टिकट पर 1996 में पहली बार कल साल सीट से चुनावी मैदान में उतरे और की के दिग्गज नेता और नौ बार के विधायक रहे उदल को हराकर विधानसभा पहुंचे। इस सीट पर अपना दल से संस्थापक सोनेलाल पटेल को भी मात दी थी। इसके बाद नजर आए 2002, 2007 तो 2012 में विधायक बने 1996 से 2007 तक बीजेपी से विधायक बने और 2009 में समाजवादी पार्टी से उपचुनाव जीते जबकि 2012 में कांग्रेस से विधायक चुने गए बीजेपी में रहते हुए अजय राय उत्तर प्रदेश सरकार में एक बार दर्जा प्राप्त मंत्री भी रहे।

अजय रानी भले ही अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत संघ और बीजेपी से की हो लेकिन उनका परिवार खाटी कांग्रेसी रहा है। अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय कांग्रेस से जुड़े रहे जबकि पिता सुरेंद्र राय के बड़े भाई श्री नारायण राय कांग्रेस के बड़े नेता थे वाराणसी कांग्रेस के जिला अध्यक्ष भी रहे थे लेकिन अजय राय ने कांग्रेस के बजाय बीजेपी के साथ अपनी सियासत शुरू की वाराणसी से पांच बार विधायक और एक बार मंत्री रहे अजय राय एक दशक से ज्यादा समय से कांग्रेस से जुड़े हैं गांधी परिवार के करीबी नेताओं में माने जाते हैं और अब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है।

अजय राय भूमिहार समुदाय से आते हैं उनका सियासी आधार पूर्वांचल में है कांग्रेस से अजय राय को राज्य अध्यक्ष बनाकर उत्तर प्रदेश में दोबारा से अपने कोर वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश की है। एक समय कांग्रेस का परंपरागत वोटर ब्राह्मण, भूमिहार मुस्लिम और दलित माना जाता था। लेकिन वक्त के साथ यह वोट खिसकता गया अब कांग्रेस फिर से उसे अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है जिसके लिए अजय राय को कमान सौंपी गई है।

अजय राय तेजतर्रार और मजबूत कद के नेता है सड़क पर उतरकर संघर्ष करने का जज्बा रखते हैं अधर में लटकी कांग्रेस को दोबारा से खड़े करने की चुनौती अजय राय के सामने है। अजय राय के सामने ना केवल संगठन को मजबूत करने बल्कि कांग्रेस के वोट बैंक को वापस लाने की भी बड़ी चुनौती है। अब देखना यही होगा कि अजय राय इन तमाम चुनौतियों को पार पाने में कितने कामयाब हो पाते हैं।