नई दिल्ली। हाय रे महंगाई……मार मार कर आम आदमी को ऐसा लंगड़ा बना दे की उसकी सात पीढ़ी भी आगे अपाहिज ही पैदा हो। ….कहते हैं न कि जब विपत्ति आती है तो चारों तरफ से आती है……कुछ ऐसा हीं हाल आज देश की ज्यादातर मध्यम वर्ग की जनता झेल रही है। संक्षेप में कहें तो आमदनी चवन्नी और खर्चा रुपईया…..।
जिन्दगी की तन्हाई लिखूँ,
या अपनों की रूसवाई लिखूँ,
बढ़ती हुई महंगाई लिखूँ
या घटती हुई कमाई लिखूँ.
उत्तर प्रदेश सरकार ने निजी स्कूलों को शैक्षिक सत्र 2022-23 में फीस बढ़ाने की अनुमति दी है. फीस वृद्धि की गणना वर्ष 2019-20 की फीस को आधार मानकर होगी. माध्यमिक शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव आराधना शुक्ला ने इस बाबत शासनादेश जारी किया है. पहले से हीं प्राईवेट स्कूलों की फीस इतनी ज्यादा है कि मध्यम वर्ग में भी सिर्फ उच्च मध्यम वर्ग के लोग ही अपने बच्चों के अच्छे प्राईवेट स्कूलों में पढ़ा सकते हैं। सरकारी स्कूलों की शिक्षा का हाल यह है कि वो सिर्फ डिग्री देने वाले संस्थान बनकर रह गये हैं। इसपर ध्यान देने के लिये शायद सरकार के पास वक्त नहीं हैं। …….अरे सरकार…महंगाई इस कदर बढ़ेगी, तो बिटिया स्कूल में कैसे पढ़ेगी…
महंगाई इस कदर बढ़ गई है कि गरीब तबके के लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए भी सोचना होगा। फल से लेकर तेल तक , गैस से लेकर पेट्रोल तक, फल से लेकर सब्जी तक आदि के दाम आसमान छू रहे है। हालत यह है कि सभी चीजों पर महंगाई की मार पड़ी है। यहां तक की सफर करना भी इन दिनों महंगा साबित हो गया है। लगातार पेट्रोलियम पदार्थों में दाम बढोतरी होने के बाद से बस वालों ने किराया तक बढ़ा दिया है। इस महंगाई में मध्यम वर्ग व गरीब वर्ग के लोग ज्यादा पीस रहे है। मुश्किल से गरीबों के थाली तक पहुंचने वाली दाल भी अब नसीब नहीं हो रही। दो रूपये में बिकने वाला नींबू अब 15 रूपये में एक मिल रहा है। आसमान छू रहा पेट्रोल-डीजल का दाम ।
2014 तक जो गैस सिलेडर 500 रुपये के नीचे तक था अब वह 1051 रुपये में बिक रहा है। गैस के बढ़े हुए दामों में उज्जवला योजना ठप जैसी हो गई है। महंगाई की मार से गैस सिलेंडर मजबूरी में लोग खरीद रहे है। सब्जियों के दाम ने लगाई आग – अप्रैल के महीने में सब्जियों के दामों ने भी आग लगा रखी है। कोई भी हरी सब्जी 40 रूपये के नीचे नहीं बिक रही है। आलू ने भी दहाई के आंकड़ा में प्रवेश कर दिया है। नेनुआ जैसी सब्जी 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रही है। फल का भी दाम भी कम नहीं है । किसानों के लिए दोहरी मार महंगाई से पड़ रही है। जहां डीजल के महंगा होने पर खेती की जोताई व सिचाई पर असर पड़ रहा है। तो दूसरी ओर से डीएपी पर 150 रूपये की बढ़ोतरी की गई है। जिसका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा।
कोविड-19 महामारी के कारण आए आर्थिक संकट से एक साल के दौरान भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या करीब 9.9 करोड़ से घटकर करीब 6.6 करोड़ रह गई है। जहां मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या कम हुई है, वहीं भारतीय परिवारों पर कर्ज का बोझ बढ़ा है। विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों में कहा गया है कि कोरोना महामारी की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की रोजगार मुश्किलें बढ़ी हैं। जहां वर्क फ्रॉम होम की वजह से टैक्स में छूट के कुछ माध्यम कम हो गए, वहीं बड़ी संख्या में लोगों के लिए डिजिटल तकनीक, ब्रॉडबैंड, बिजली का बिल जैसे खर्चों के बढ़ने से आमदनी घट गई है। पिछले एक वर्ष में देश में मध्यम वर्ग के सामने एक बड़ी चिंता उनकी बचत योजनाओं और बैंकों में स्थायी जमा (एफडी) पर ब्याज दर घटने संबंधी भी रही है। चूंकि देश में बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं है, इसलिए कोरोना काल में उनकी मुश्किलें और बढ़ी हैं।
निःसंदेह वर्ष 1991 से शुरू हुए आर्थिक सुधारों के कारण देश की ऊंची विकास दर के साथ-साथ शहरीकरण की ऊंची वृद्धि दर के बलबूते भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की आर्थिक ताकत तेजी से बढ़ती गई है। इसी ताकत के बल पर भारत ने 2008 के ग्लोबल वित्तीय संकट और फिर 2020 के कोरोना संकट से बहुत कुछ निजात पाई है। लेकिन भारत के उपभोक्ता बाजार और भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में जिस मध्यम वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका है, वह इस समय विभिन्न सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए भी दिखाई दे रहा है।
विभिन्न आर्थिक मुश्किलों के कारण मध्यम वर्ग की परेशानियों को कम करने के लिए सरकार को इस वर्ग को वित्तीय राहत और प्रोत्साहन के बारे में विचार करना चाहिए। इससे मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति बढ़ेगी, नई मांग का निर्माण होगा और अर्थव्यवस्था गतिशील होगी।
रिपोर्ट- धर्मेन्द्र कुमार सिंह