Bijnor Lok Sabha Seat: बिजनौर में नल और कमल मिल कर करेंगे कमाल या फिर हाथी और साइकिल देगें टक्कर

bijnor

Bijnor Lok Sabha Seat: बिजनौर का मतदाता किसी एक पार्टी को नहीं बनने देता अपना गढ़,बिजनौर में 39 साल से नहीं जीत पायी कांग्रेस , भाजपा , सपा और बसपा में चलती है म्युजिकल चेयर रेस।

Bijnor Lok Sabha Seat

Bijnor Lok Sabha Seat: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बिजनौर लोकसभा सीट रालोद – भाजपा गठबंधन में रालोद के हिस्से में आयी है । बिजनौर राजनीतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र रहा है । यहां से पूर्व लोकसभा अध्य़क्ष मीरा कुमार और बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमो चुनाव लड़ कर संसद पहुंची थीं । स्वर्गीय राम विलास पासवान ने भी यहां से चुनाव लड़ा था लेकिन वे हार गए। इस सीट की विशेषता ये है कि ये कभी किसी एक दल का गढ़ नहीं रही ।

इस सीट के मतदाता कभी किसी दल को तो कभी किसी दल को चुनाव जीताते हैं । पहले दो चुनाव 1952 , 1957 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जीते 1962 में प्रकाशवीर शास्त्री निर्दलीय जीते 1967 और 1971 में यहां फिर कांग्रेस के स्वामी रामानंद शास्त्री विजयी रहे । आपातकाल के बाद जब देश का पूरा राजनीतिक वातावरण कांग्रेस के खिलाफ हो गया और कई दलों ने मिल कर जनता दल बनाया तो 1977 और 1980 में जनता दल के उम्मीदवार जीते । श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद फिर देश का राजनीतिक मूड बदला । कांग्रेस को सहानुभूति वोट मिला 1984 में यहां से कांग्रेस के चौधरी गिरधारी लाल और 1985 में स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम की बेटी और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने बिहार मूल की होने के बाद भी बिजनौर लोकसभा सीट से 1985 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत कर संसद पहुंची । अगला चुनाव आते आते बहुजन समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें जमा चुकी थीं । बसपा नेता मायावती ने 1989 में पहला चुनाव लड़ा और जीत गयी । अगले दो चुनावों 1991 , 1996 में भाजपा ने बसपा को हरा कर सीट पर कब्जा किया । समाजवादी पार्टी यहां पहली बार 1998 में चुनाव मैदान में आयी और उनकी उम्मीदवार ओमवती जीत गयीं । अगले लोकसभा चुनाव 1999 में भाजपा ने सपा को हराकर जीत हासिल की । राष्ट्रीय लोकदल यहां से पहली बार 2004 में चुनाव मैदान में उतरा । लगातार दो बार रालोद ने चुनाव जीता 2004 में मुंशी राम सिंह और 2009 में संजय सिंह चौहान यहां से रालोद सांसद बन कर लोकसभा पहुंचे । मीरा कुमार के बाद से बिजनौर ने 1985 से किसी कांग्रेसी उम्मीदवार को नहीं जिताया । भाजपा यहां से 1991 से जीतती हारती रही है 1996 के बाद 2014 में भाजपा ने यहां फिर से जीत हासिल की । कुंवर भारतेंद्र सिंह जीत कर लोकसभा पहुंचे । जैसा कि इस सीट का स्वभाव है अगले चुनाव में 2019 में बहुजन समाजवादी पार्टी के मलूक नागर को बिजनौर की जनता ने अपना लोकसभा प्रतिनिधि चुना ।

अठारहवीं लोकसभा के लिए भाजपा-रालोद के संयुक्त उम्मीदवार चंदन सिंह चौहान को टिकट दिया गया है । चौधरी जयंत सिंह ने युवा चेहरे चंदन सिंह पर भरोसा जताया है । चंदन सिंह के दादा चौधरी नारायण सिंह यूपी के उप मुख्यमंत्री रहे हैं । उनके पिता संजय सिंह चौहान यूपी विधानसभा के सदस्य और बिजनौर से सांसद रहे हैं। पिता भी रालोद में ही थे । बिजनौर लोकसभा सीट ने इस बार समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव की उलटी पलटी देखी तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने रसूखदार और अमीर सांसद मलूक नागर का टिकट काट कर पूर्व पत्रकार विजेंद्र सिंह को टिकट दिया है ।

समाजवादी पार्टी ने पहले यहां से अनुसूचित जाति के पूर्व सांसद यशवीर सिंह को टिकट दिया था लेकिन फिर उन्होंने अपना फैसला बदल लिया और नूरपुर विधानसभा से विधायक राम अवतार सैनी के बेटे दीपक सैनी को टिकट दे दिया । अब मुकाबला चंदन चौहान , दीपक सैनी और विजेंद्र सिंह के बीच है । विजेंद्र सिंह की राह यहां मुश्किल हो सकती है यहां के मौजूदा बसपा सांसद मलूक नागर बसपा छोड़ कर बृहस्पतिवार को रालोद में शामिल हो गए हैं । मलूक नागर भारत के सबसे अमीर सांसदों में से एक हैं । पिछले लास दिसंबर में वे मीडिया की सुर्खियों में आए थे 13 दिसंबर को लोकसभा में हमला करने पहुंचे दो युवकों को उन्होंने धर दबोचा था और जम कर पिटाई करके पुलिस के सुरक्षा कर्मियों के हवाले कर दिया था । मलूक सिंह नागर ने मायावती बहन जी को दो पेज का पत्र लिखा है और पार्टी छोड़ने के कारण बताए हैं । मलूक सिंह नागर के रालोद में आने से बसपा को बिजनौर में झटका लगा है । मलूक नागर चंदन सिंह चौहान को जीताने के लिए जी जान लगा देंगे । अपने संसदीय क्षेत्र में उनकी अच्छी खासी पैठ है । मलूक नागर भाजपा – रालोद के हाथ मजबूत करेंगे । नागर को 2019 के चुनाव में 50 फीसदी ये ज्यादा वोट मिले थे भाजपा दूसरे नंबर पर 44.61 % कर रही थी जबकि कांग्रेस को केवल 2.35 फीसदी वोट ही मिले थे ।

 बिजनौर सीट का 1952 से चुनावी इतिहास रोचक है तो प्राचीन इतिहास गौरवशाली है । गंगा के किनारे बसा बिजनौर आदिकाल में ऋषि मुनियों की तपस्थली रहा । महर्षि कण्व की तपस्थली और आश्रम इसी इलाके में था । शकुंतला उन्ही के आश्रम में रहती थी यहीं राजा दुष्यंत से वे मिली दोनों में प्यार हुआ । राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत का जन्म कण्व ऋषि के आश्रम में हुआ । भरत के नाम पर भारत का नाम भारत  रखा गया । द्वापर युग से भी बिजनौर का प्राचीन संबंध है । कौरवों के प्रमुख सलाहकार और मंत्री विदुर जब दुर्योधन के व्यवहार और हठधर्मिता से नाराज़ हो गए तो हस्तिनापुर छोड़ कर वे बिजनौर इलाके में आ गए और महाभारत के युद्ध के बाद युद्ध प्रभावित महिलाओं और बच्चों को अपने आश्रम में संरक्षण दिया था । विदुर कुटी बिजनौर शहर से लगभग 12 किलोमीटर दूर है और ये पर्यटन स्थलों में से एक है ।

बिजनौर का चुनावी इतिहास जैसा कि आपने पढ़ा बहुत उथल पुथल वाला रहा है मतदाता किसी एक पार्टी के उम्मीदवार को सिर आंखों पर नहीं बिठाते । मुस्लिम मतदाता यहां अहम भूमिका निभाता है । 2019 में सपा उम्मीदवार नहीं था तो मलूक सिंह नागर को बहुत ज्यादा वोट मिले थे इस बार चुनावी समीकरण बदले हुए हैं रालोद सपा से अलग हो गया है । राम मंदिर बनने के बाद से हिन्दू वोट बैंक एकजुट हुआ है । इस बार मुकाबला रोचक है भाजपा –रालोद को मलूक सिंह नागर का साथ मिल गया तो कांग्रेस और सपा एक साथ आ गए हैं । कांग्रेस का 1985 के बाद से यहां कोई प्रभाव नहीं है कोई कांग्रेस उम्मीदवार यहां से नहीं जीता है । देखना होगा इस बार नल और कमल बाजी मारेंगे या साइकिल और हाथ ।

इसे भी पढे़:-Baghpat News: लोकसभा चुनाव 2024, चौधरी चरण सिंह के गढ़ बागपत में इस बार चलेगा हैंडपंप ?

Reported By: Mamta Chaturvedi / Special Correspondent