नई दिल्ली। 2022 के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के मतदान के दौरान जब वोटरों से बात की गई तो मामला काफी पेचिदा लगा। कई जगह एक ही परिवार में अलग अलग मुद्दों के आधार पर लोगों ने अपना वोट डाला । इस चुनाव में कुछ जातियों को छोड़ दें तो जातीय समीकरण कमजोर पड़ते दिखे।
इस चुनाव में ये भी दिखा कि लोगों में राजनीतिक जागरुकता काफी बढ़ी है। लोग खुलकर सरकार की अच्छाई और बुराई के बारे में बेबाकी से बोलते दिखे। लोगों की जुबान पर उनके मुद्दे थे। नोटा के बारे में किसी ने कुछ नही बोला। इस चुनाव में लगभग सभी राजनीतिक दल या चुनाव का सर्वे करने वाले नामी गिरामी राजनीतिक पंडित जनता का सटीक रुख नहीं भांप सके। क्योंकि इस बार नेता हीं ज्यादा बोलते नजर आये, ज्यादातर मतदाता चुप हीं रहे।
हमारा सर्वेक्षण मतदान के दौरान वोटरों की दी गई प्रतिक्रिया पर आधारित है। हम ये दावा नहीं करते कि किस राज्य में किसकी सरकार बनेगी। लेकिन अगर जनता के चुनावी मुद्दों के आधार पर आप गुणा भाग करेंगे तो खुद हीं समझ में आ जायेगा कि हवा का रुख किधर है।
इस चुनाव में मतदाताओं की जागरुकता ये बता रही है कि अब नेता जनता को बहुत समय तक मूर्ख नहीं बना सकते। जनता अब जाति धर्म से उपर उठकर अपने और देश के भविष्य को पहचानने लगी है। चाहें किसी भी पार्टी की सरकार हो, अगर जनता की परेशानी बढ़ेगी तो उस सरकार को जनता की अदालत से सजा जरुर मिलेगी। तमाम समस्याओं से दिन रात जूझ रही जनता अब नेताओं के बख्शने वाली नहीं है।
तो आईये संक्षिप्त में हम जान लेते हैं कि इस चुनाव में जनता के किस वर्ग ने किन मुद्दों पर अपने मताधिकार का प्रयेग किया है।—-:
महिलायें-मतदान के दौरान जब महिलाओं और लड़कियों से ये पूछा गया कि आपने किस मुद्दे पर अपना वोट डाला ? तो ज्यादातर महिलाओं और लड़कियों के जवाब में सुरक्षा का मुद्दा था । यूपी की ज्यादातर महिलायें और लड़कियां सुरक्षा के मुद्दे पर इस सरकार से खुश नजर आईं। उनका कहना था कि अब हमलोग शाम को या देर रात को भी कहीं आने जाने में बिल्कुल नहीं डरते, क्योंकि इस सरकार और पुलिस प्रशासन ने बदमाशों को बिल में छुपने पर मजबूर कर दिया है।
युवा वर्ग–मतदान के दौरान वोट देने के लिये लाईन में लगे युवाओं से जब ये पूछा गया कि आपने किस मुद्दे पर अपना वोट डाला ? तो ज्यादातर युवा यही बात बोलते नजर आये कि हमारे लिये सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है, काम नहीं मिल रहा, वेकेंसी नहीं आ रही, भर्ती नहीं हो रही है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि पांचों चुनावी राज्यों के ज्यादातर युवा अपने राज्यों की वर्तमान सरकारों से नाराज दिखे।
घर का मुखिया– मतदान के दौरान वोट देने के लिये लाईन में लगे परिवार के मुखिया से जब ये पूछा गया कि आपने किस मुद्दे पर अपना वोट डाला ? तो ज्यादातर परिवार के मुखिया यही बात बोलते नजर आये कि हमारे लिये सबसे बड़ी समस्या महंगाई है। हर चीज का दाम इतना ज्यादा बढ़ गया है कि घर चलाने में बहुत परेशानी हो रही है….अपने परिवार की सभी जरुरतें पूरी नहीं कर पा रहे हैं।…..कुल मिलाकर इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि पांचों चुनावी राज्यों के ज्यादातर परिवार के मुखिया केन्द्र और अपने राज्यों की वर्तमान सरकारों से नाखुश दिखे ।
फर्स्ट टाईम वोटर–मतदान के दौरान वोट देने के लिये लाईन में लगे फर्स्ट टाईम वोटर बहुत उत्साहित और खुश दिखे। उनकी पहली खुशी ये थी कि उन्हें पहली बार मतदान करने का मौका मिला था। लेकिन जब उनसे ये सवाल किया गया कि आपने किस मुद्दे पर अपना वोट डाला ? तो ज्यादातर फर्स्ट टाईम वोटर यही बात बोलते नजर आये कि हमारे लिये सबसे बड़ी समस्या पढ़ाई लिखाई की है। कोरोना काल में पिछले दो साल से हमारी पढ़ाई बहुत प्रभावित हुई है । ऐसे में हम अमीर घर के बच्चों से काफी पिछे हो गये हैं।……..कुल मिलाकर इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि पांचों चुनावी राज्यों के ज्यादातर फर्स्ट टाईम वोटर केन्द्र और अपने राज्यों की वर्तमान सरकारों से नाखुश दिखे ।
किसान-मतदान के दौरान वोट देने के लिये लाईन में लगे किसानों से जब ये पूछा गया कि आपने किस मुद्दे पर अपना वोट डाला ? तो ज्यादातर किसान यही बात बोलते नजर आये कि हमारे लिये सबसे बड़ी समस्या खाद डीजल की महंगाई है….जब हमारी फसल तैयार होती है उस समय औने पौने रेट पर बेचनी पड़ती है…फसलों की उचित कीमत नहीं मिल पाती..कई बार तो फसल की लागत भी नहीं निकल पाती । अनाज क्रय केन्द्रों पर बहुत धांधली होती है। किसानों की सुनने वाला कोई नहीं है।……..कुल मिलाकर इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि पांचों चुनावी राज्यों के ज्यादातर किसान केन्द्र और अपने राज्यों की वर्तमान सरकारों से नाखुश दिखे ।
BPL के लोग–मतदान के दौरान वोट देने के लिये लाईन में लगे गरीबी रेखा के नीचे वाले लोगों से जब ये पूछा गया कि आपने किस मुद्दे पर अपना वोट डाला ? तो ज्यादातर गरीबी रेखा के नीचे वाले यही बात बोलते नजर आये कि हमारे लिये सबसे बड़ी समस्या थी कोरोना काल में पेट पालने की । सरकार ने फ्री में राशन पानी दिया है….हमलोग इससे बहुत खुश हैं । …….कुल मिलाकर इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि पांचों चुनावी राज्यों के ज्यादातर गरीबी रेखा के नीचे वाले लोग केन्द्र और अपने राज्यों की वर्तमान सरकारों से खुश दिखे ।
जातीय समीकरण के मुद्दे पर…… मतदान के दिन खुलकर किसी भी मतदाता ने जाति के आधार पर वोट देने की बात नहीं कबूल की। सबने सरकारों की बड़ाई या आलोचना सिर्फ मुद्दों को ही आधार बनाकर की । लेकिन पूरे उत्तर प्रदेश में देखा गया कि कुछ जातीयों के मतदाता कुछ खास पार्टी के पक्ष में ही बोलते नजर आये । जैसे यूपी में यादव जाति के अधिकांश मतदाता समाजवादी पार्टी के पक्ष में बोलते नजर आये तो राजपूत जाति के मतदाता बीजेपी के पक्ष में ।
बुद्धजीवी वर्ग–वोटिंग के दिन लगभग अधिकांश मतदान केन्द्रों पर कुछ बुद्धजीवी लोगों से भी जब बात करने की कोशिश की गई तो उनका ये कहना था कि कोई भी सरकार आपको घर बैठे सबकुछ फ्री में नहीं दे सकती। लेकिन सड़क-बिजली, कानून व्यवस्था, सुरक्षा और राज्य में अमन शांति का होना बहुत जरुरी है। अगर ये सब सुविधा जो भी सरकार देगी, हम तो उसी का साथ देंगे ।
इस पैमाने के आधार पर और वहां के स्थानीय जर्नलिस्टों से बातचीत के बाद जो आंकड़े सामने आये हैं, उन्हें हम आपतक पहुंचा रहे हैं।
उत्तराखंड–70
बीजेपी –24-30
कांग्रेस–34-40
AAP–0-2
अन्य–3-7
पंजाब—117
AAP–72-86
कांग्रेस–23-35
SAD+BSP–08-12
BJP+–02-05
अन्य–02
गोवा—-40
बीजेपी –13-19
कांग्रेस–14-20
MGP+TMC–1-2
AAP–0-2
अन्य–0-4
मणिपुर—60
बीजेपी –10-26
कांग्रेस–17-22
NPF–02-06
NPP–06-10
अन्य–03-06
रिपोर्ट– इंडियापोस्ट न्यूज टीम