Sallekhana Pratha: जैन धर्म में क्या है संलेखना परंपरा का मतलब है, क्यों इसे कहते हैं खुदकुशी?

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Sallekhana Pratha: आचार्य विद्यासागर के महा समाधि लेने के बाद इस बात की काफी चर्चा है कि आखिरकार महासमाधि क्या होती है । जैन परंपरा के मुताबिक माहा समाधि या संलेखना से नश्वर जीवन की मुक्ति बिना किसी विशेष कर्मकांड के ही की जा सकती है। महासमाधि के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं जैसे अहिंसा संपत्ति का संचय ना करना झूठ ना बोलना चोरी ना करना।

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Sallekhana Pratha: जैन धर्म में लोग इन नियमों का पूरी तरह से पालन करते हैं जैन धर्म का मानना है कि ब्राह्मण में सभी पदार्थ अपना रूप बदलते हैं और कुछ भी नष्ट नहीं किया जा सकता और ना ही कुछ नया बनाया जा सकता है। इसलिए जैन धर्म ईश्वर में नहीं आत्मा में विश्वास रखता है महासमाधि को आमतौर पर मुक्ति या मोक्ष के रूप में जाना जाता है हाल ही में आचार्य विद्यासागर ने महा समाधि अर्थात संलेखना परंपरा के माध्यम से अपना शरीर त्याग दिया।

जैन धर्म की अपनी कुछ खासियत है जिसमें संलेखना परंपरा का एक विशेष महत्व है संलेखना परंपरा उसे वक्त अपनाई जाती है जब व्यक्ति की मृत्यु नजदीक आने और व्यक्ति को ऐसा लगता है कि कुछ ही दिनों में उसकी मृत्यु हो सकती है तब वह स्वयं ही भोजन और जल त्याग देता है दिगंबर जैन शास्त्र के मुताबिक इसे ही महासमाधि या संलेखना कहा जाता है साथ ही इस परंपरा के जरिए व्यक्ति अपने प्राण त्याग देता है इस विधि का प्रयोग कर आचार्य विद्यासागर ने अपने प्राण त्याग दिए।

जैन शब्द की उत्पत्ति जिन या जैन से हुई है जिसका मतलब है विजेता भगवान महावीर ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जैन धर्म का प्रचार किया तब से यह धर्म प्रमुख रूप से सामने आया जैन धर्म के कुल 24 महान शिक्षक हुए जिसके अंतिम शिक्षक भगवान महावीर थे। इन 24 शिक्षकों को तीर्थंकर कहा गया है वे लोग जिन्होंने अपने जीवन में सभी ज्ञान प्राप्त कर लिया था और लोगों तक इसका प्रचार प्रसार भी किया जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ थे।

आचार्य विद्यासागर से पहले भी जैन धर्म के मुताबिक लोक संलेखना परंपरा का पालन करते हुए मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं। साल 2018 में जैन मुनि तरुण सागर ने इसी प्रकार से माहा समाधि ले मोक्ष प्राप्त किया और इससे पहले 2015 में नरेंद्र कुमार जैन ने संलेखना लेने का फैसला लिया इसके बाद उन्हें गुरु से आदेश मिलने का इंतजार करना पड़ा आचार्य विद्यासागर ने उन्हें इजाजत दी और उसके बाद नरेंद्र कुमार जैन के लिए संलेखना का रास्ता खुल गय इसे पहले भी बहुत से लोगों ने संलेखना परंपरा का पालन करते हुए मोक्ष प्राप्त किया।

संलेखना को लेकर कुछ लोग इस प्रथा का विरोध भी करने लगे थे वह संलेखना प्रक्रिया को आत्महत्या मानते हैं इसलिए साल 2006 में एक व्यक्ति ने इस परंपरा के खिलाफ एक जनहित याचिका में कहा कि संलेखना प्रथा आत्महत्या जैसी है। वर्तमान काल में इसे मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। इसके बाद साल 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट में इस याचिका पर फैसला सुनाया कोर्ट ने संलेखना प्रथा को गैरकानूनी बताया कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर धर्म ग्रंथ में यह कहा गया है कि संलेखना से मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो भी यह मोक्ष प्राप्ति का सिर्फ एक ही मार्ग नहीं है यह प्रथम जैन धर्म के लिए अनिवार्य नहीं है। ऐसा कहते हुए राजस्थान कोर्ट ने संलेखना पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को स्थगित करते हुए संलेखना के प्रथम को जारी रखने की अनुमति देता है।

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