UP Officers: अमिताभ ठाकुर, बाबा हरदेव और अब सुलखान सिंह अपनी पार्टी बना सियासत में कितना सफल रहे यूपी के अफसर-जानें

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UP Officers: यूपी के डीजीपी रहे सुल्तान सिंह ने बुंदेलखंड लोकतांत्रिक पार्टी बनाई है। जबरन रिटायर किए गए अमिताभ ठाकुर भी अपनी पार्टी बन चुके हैं। राजनीतिक दल बनाने वाले यूपी के ज्यादातर अफसर असफल रहे हैं।

UP Officers

UP Officers: अगले साल लोकसभा चुनाव है 2024 में उससे पहल यूपी में एक और नया राजनीतिक दल आ गया है पूर्व डीजीपी सुल्तान सिंह ने बुंदेलखंड लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया है। उत्तर प्रदेश में पहले भी रिटायर्ड रिटायर्ड ऑफिसर आईपीएस अधिकारी पार्टियां बनाते रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी और रिटायर आईपीएस अधिकारी सुलखान सिंह ने बुंदेलखंड लोकतांत्रिक पार्टी का गठन कर अपनी राजनीतिक पारीक ऐलान कर दिया है। इसके बाद सत्ता और अफसर शाही के गरियारों में चर्चा शुरू हो गई है की जमीन पर उनके यहां ऐलान राजनीतिक सफलता के किस मुकाम तक पहुंचेगा।

दरअसल उत्तर प्रदेश में अभी तक अफसर शाही के राजनीतिक राह पकड़ने के मामलों में सफलता और असफलता के नतीजे में ही सामने आए हैं जिन अफसर ने खुद का दल बनाकर या छोटे-मोटे दलों के सहारे राजनीति को चमकाने की कोशिश की उनमें से ज्यादातर नाकाम रहे है लेकिन जिन्होंने बड़े दलों की शामिल हुए वे राजनीति में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए।

विजय शंकर पांडेय: उत्तर प्रदेश में भ्रष्टतम आईएएस अधिकारियों की सूची जारी कर देशभर में चर्चा में आए पूर्व आईएएस अधिकारी विजय शंकर पांडे की राजनीतिक पारी भी सफल नहीं रही। 2019 में उन्होंने फैजाबाद में लोक गठबंधन पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें मात्र 2056 वोट ही मिले।

अमिताभ ठाकुर :1992 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे अमिताभ ठाकुर को योगी सरकार 2.0 में सेवा से जबरन रिटायर कर दिया गया। पहले चर्चा रही कि वह आम आदमी पार्टी ज्वाइन करेंगे लेकिन उन्होंने आजाद अधिकार सेवा का गठन किया। अमिताभ ठाकुर की पार्टी अभी गैर पंजीकृत पार्टी श्रेणी में है लेकिन लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारने की तैयारी है। भले ही उम्मीदवार निर्दलीय के तौर पर उतरे। पार्टी का दावा है कि करीब 10000 सदस्य बन चुके हैं।

बाबा हरदेव सिंह: कभी बुलडोजर बाबा के नाम से पूरे राज्य में पहचाने जाने वाले पीसीएस अधिकारी रहे बाबा हरदेव सिंह ने भी रिटायरमेंट के बाद राजनीतिक अखाड़े में ताल ठोकी। पहले वह राष्ट्रीय लोक दल से जुड़े और उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष भी रहे बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने आगरा की एक एत्मादपुर सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा।

शैलेंद्र सिंह : माफिया मुख्तार अंसारी के खिलाफ हाई कोर्ट के बाद पड़े राजनीतिक और विभागीय दबाव के विरोध में साल 2002 में नौकरी से इस्तीफा देने वाले पीपीएस अधिकारी शैलेंद्र सिंह भी राजनीति में आए। वाराणसी लोकसभा से निर्दलीय चुनाव लड़े लेकिन हार के बाद वह कांग्रेस से जुड़े और पार्टी के टिकट पर 2009 में चंदौली और 2012 में सैय्यद राजा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन कामयाबी नहीं मिली बाद में बीजेपी में शामिल हो गए।

चंद्रपाल : आईएएस अधिकारी रहे चंद्रपाल ने रिटायरमेंट के बाद आगरा से चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं मिली बाद में उन्होंने आदर्श समाज पार्टी बनाई और 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा।

एसआर दारापुरी : पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे एस आर दारापुरी रिटायरमेंट के बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में शाहाबाद सीट से रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया से चुनाव लड़े लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई।

पूर्व आईपीएस दावा शेरपा : 2008 में इस्तीफा देकर राजनीति में उतरे 4 साल तक ना उनका इस्तीफा मंजूर हुआ ना नौकरी ज्वाइन की । राजनीतिक पारी में असफल होने के बाद 2012 में वह नौकरी में लौट आए। कई साल तक उनका प्रमोशन लटक रहा बाद में वह एडीजी के पद से रिटायर हुए।

अफसर के अलावा पूर्व न्यायाधीश चंद्र भूषण पांडे ने भी सियासत दल बनाया जिसका नाम नैतिक पार्टी रखा इसे अब तक चुनावी सफलता नहीं मिल पाई है।

जिन अफसर के बड़े दलों का हाथ थामा उनके राजनीतिक कैरियर में चार चांद लग गए। इसमें सबसे पहले नाम आता है पी एल पुनिया का कभी बीएसपी सुप्रीमो मायावती के सबसे करीबी आईएएस अफसर में गिने जाने वाले पीएल पुनिया ने रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस का हाथ थाम कर सांसद बने और कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाली। मायावती के एक और करीबी अफसर माने जाने वाले पूर्व आईपीएस बृजलाल रिटायरमेंट के बाद भाजपा में शामिल हो गए। वह वर्तमान में राज्यसभा सांसद है। आईपीएस की सेवा से बीच में ही वीआरएस लेने वाले असीम अरुण योगी सरकार में राज्य मंत्री हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले प्रवर्तन निदेशालय से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने वाले राजेश्वर सिंह विधायक हैं। रिटायरमेंट के बाद भाजपा में शामिल होने वाले और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी अफसर में गिने जाने वाले एक ही शर्मा उत्तर प्रदेश के कैबिनेट में मंत्री है।

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