Vote For Note Case: नोट लेकर वोट या भाषण सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

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Vote For Note Case: सुप्रीम कोर्ट में वोट के बदले नोट मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है। अब अगर सांसद पैसे लेकर सदन में या बाहर बयान देते है तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकेगा यानी कि अब उनको इस मामले में कानूनी छूट नहीं मिलेगी।

Vote For Note Case

Vote For Note Case: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने नोट पर वोट के मामले में फैसला सुनाते हुए सांसदों और विधायकों को कानून से छूट देने से इनकार कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विधायिका के किसी सदस्य द्वारा किया गया भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को खत्म कर देती है।

सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए पिछले फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने बड़ा फैसला सुनाते हुए पिछले आदेश को पलट दिया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के नरसिम्हा राव के फैसले को पलट दिया 1998 में पांच जजों की पीठ ने 32 के बहुमत से तय किया था कि इस मुद्दे को लेकर जन्म प्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के चलते अब संसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेते हैं तो मुकदमे की कार्रवाई से नहीं बच सकेंगे।

सीजीआई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सहमति से दिए अहम फैसले में कहा कि विधायिका के किसी सदस्य द्वारा किया गया भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी खत्म कर देती है।

इसके अलावा सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने विवाद के सभी पहलू पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लिया है क्या सांसदों को इससे छूट मिलनी चाहिए इस बात से हम सहमत है बहुमत से खारिज करते हैं नरसिम्हा राव मामले में बहुमत का फैसला जिस रिश्वत लेने के लिए अभियोजन को छूट मिलती है बस आपसे नहीं जीवन पर बड़ा प्रभाव डालता है।

सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 105 के रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी जा सकती क्योंकि अपराध करने वाले सदस्य वोट डालने से संबंधित नहीं है। नरसिम्हा राव के मामले की व्याख्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 दो और 194 के विपरीत है इसलिए हमने पी नरसिम्हा राव मामले में फैसले को खारिज कर दिया।

आपको बता दे की पांच सदस्य पीठ ने इस मुकदमे से जुड़े मसले को व्यापक और जनहित से जुड़ा मानते हुए सात सदस्य पीठ को सौंप दिया था। तब कहा गया था कि हमला राजनीतिक सदाचार से जुड़ा है यह भी कहा गया था कि संसद और विधानसभा सदस्यों को छठ का प्रावधान इसलिए दिया गया था कि वह मुक्त वातावरण और बिना किसी परिणाम की चिंता के अपने दर्द का पालन कर सके।

यह मामला झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों के रिश्वत कांड पर आए आदेश से जुड़ा है जिस पर सुप्रीम कोर्ट विचार किया। आरोपी के सांसदों ने 1993 में नरसिम्हा राव सरकार को समर्थन देने के लिए दिया था इस मामले पर 1998 में 5 जजो की बेंच फैसला सुनाया था लेकिन अब 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे फैसले को पलट दिया है।

यह मुद्दा दोबारा तब उठा जब झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक सीता सोरेन ने अपने खिलाफ जारी अपराधी कार्रवाई को रद्द करने की याचिका दाखिल की उन्होंने कहा कि संविधान में उन्हें अभियोजन से छूट मिली हुई है दरअसल सीता सोरेन पर आरोप था कि उन्होंने 2012 में झारखंड राज्यसभा चुनाव में खास प्रत्याशी को वोट देने के लिए रिश्वत लिया था।

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