हमारे देश खेल से लेकर तकनीक और शिक्षा के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ा है। इस प्रगति में पुरुषों के साथ महिलाओं का भी उतना ही योगदान है। महिलाएं प्रगति कर रही हैं और वह आगे बढ़ना चाहती हैं पर अधिकारों की जानकारी के अभाव में वह पीछे हो रह जाती हैं। कि यदि भारत के संविधान की बात करें तो हर व्यक्ति को चाहे वह स्त्री हो पुरुषों एक ही नजर से देखता है।भारत के संविधान में सभी एक बराबर है। गर समाज ने जिस तरह से महिलाओं के प्रति हीन भावना रखी है,उसने एक लंबे वक्त तक महिलाओं को असहज रखा हुआ है इसे असहजता से उबारने के लिये कानून में कई प्रावधान बनाये गये है जिसका इस्तेमाल महिलाएं कर सकती है ।
आज हम यहां कुछ ऐसे ही अधिकारों के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं जिसे भारतीय संविधान ने महिलाओं को दिया गया है ताकि वह अपना आर्थिक,मानसिक,शारीरिक और यौन शोषण से बचाव कर सकें।
समान वेतन का अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम के मुताबिक अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। हालांकि ये भी काफी हद तक सही है कि पुरुषों को ज्यादा सैलरी दी जाती है । औरतों को अपेक्षाकृत कम । जबकि कानून ये अधिकार देता है कि लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। समान मेहनत पाने के लिए महिलाओं के पास इक्वल रैम्यूनरेशन यानी कि समान महत्व बताने का अधिकार है और यह अधिकार इक्वल रैम्यूनरेशन अधिनियम के तहत प्राप्त है।
गरिमा और शालीनता का अधिकार
यानी कि राइट ऑफ डिग्निटी गरिमा और शालीनता का अधिकार हर किसी महिला के पास है किसी भी महिला को किसी भी मामले में परीक्षण की आवश्यकता हो तो दूसरी महिला या उसकी निगरानी में हो यह अधिकार भी महिलाओं को प्राप्त है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 क (ड.) में उल्लेखित मौलिक कर्तव्य में महिलाओं की गरिमा हेतु अपमानजनक प्रथाओं को त्यागने की बात कही गई है।
ऑफिस में हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार
काम पर हुए यौन उत्पीड़न या मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ एक महिला को यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का पूरा अधिकार है । (Right of Harrasment) ऐसे में जरुरी है हर महिला अपने अधिकारो के बारे में जाने जो कानून देता है।
ना नाम ना छापने का अधिकार
अगर कोई महिला दुष्कर्म की शिकार होती है तो महिलाओं को नाम ना छापने देने का अधिकार है। गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी या फिर जिलाधिकारी के सामने दर्ज करवा सकती है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
यह नियम मुख्य रूप से पति,पुरुष,लिव इन पार्टनर या फिर रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है।आप या आप की ओर से कोई भी की शिकायत दर्ज करवा सकता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498 आईपीसी 498 के तहत किसी भी महिला के साथ मौखिक आर्थिक शारीरिक और मानसिक हिंसा अपराध है। धारा 498 के तहत इस अपराध के लिए 3 साल तक की गैर जमानती सजा का भी प्रावधान है।
मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार
संविधान द्वारा अनुच्छेद 42 के अंतर्गत महिला को जो किसी सरकारी संस्था या निजी संस्थान में कार्यरत है। मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के 6 महीने तक महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वह फिर से काम शुरू कर सकती है।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
भारत के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह महिलाओं को उसके मूल अधिकार जीने के अधिकार का अनुभव दे।गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक यानी के लिंग पर रोक अधिनियम (पीसीपीएनडीटी) कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है।
जीरो FIR का अधिकार
कानून द्वारा महिलाओं को जीरो FIR की भी सुविधा प्रदान की गई है। जीरो एफआईआर का मतलब होता है यदि महिला के साथ कुछ अपराध घटित होता है तो वह उस वक्त अपनी शिकायत किसी भी पुलिस थाने में कहीं से भी दर्ज करवा सकती है।
इस जीरो एफआईआर को बाद में उस थाने तक ट्रांसफर कर दिया जाएगा जहां घटनाएं अपराध घटित हुआ होगा।
भरण पोषण का अधिकार
भरण पोषण का मतलब है मेंटेनेंस डॉमेस्टिक वायलेंस एक्ट की धारा 18 महिलाओं को अधिकार प्रदान करती है कि महिला अपने पति द्वारा जीवन भर भरण पोषण का अधिकार रहेगा तलाक हो जाने के पश्चात भी महिला के पास के अधिकार 25 के अंतर्गत रहता है।
स्त्रीधन का अधिकार
विवाह के वक्त वधू को मिले उपहार को स्त्रीधन कहा जाता है जिस पर महिला का पूरा अधिकार होता है।यदि ससुराल पक्ष की ओर से स्त्री धन पर कब्जा कर लिया जाए तो महिला आईपीसी की धारा 406 के तहत शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार
बलात्कार की शिकायत हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है।
पुलिस स्टेशन ऑफिसर अर्थात (SHO)के लिए जरूरी है कि विधिक सेवा प्राधिकरण लीगल सर्विस अथॉरिटी को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करें।
रात में गिरफ्तार ना होने का अधिकार
एक महिला को सूरज डूबने के बाद सूर्य उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश आदेश पर ही यह मुमकिन है।
संपत्ति पर अधिकार
हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष का दोनों का बराबर हक है। तो इस तरह देश की हर महिला को अपने अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए ताकि चाहे घर हो या फिर बाहर कही वो बिना डर हिचकिचाहट के साथ रह सके और काम कर सके । ऐसे में बेहद आवश्यक है महिलाये अपने अधिकारो को जाने ।