मिर्जापुर, यूपी। नवरात्र में आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी के नौ रूपों की आराधना की जाती है । पहले दिन जहाँ हिमालय की पुत्री पार्वती अर्थात शैलपुत्री के रूप में माँ का पूजन करने का विधान है, वहीँ दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजन किया जाता है ।प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली माँ का यह स्वरूप बड़ा दिव्य है, माता सफेद वस्त्र धारण कर एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में माला लिए हुए सभी के लिए आरध्यनीय है । विन्ध्य और माँ गंगा के तट पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी ब्रह्मचारिणी के रूप सभी भक्तों का कष्ट दूर करती है ।
अनादिकाल से आस्था का केंद्र रहे विन्ध्याचल में विन्ध्य पर्वत व पवन पावनी माँ भागीरथी के संगम तट पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी का दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजन व अर्चन किया जाता है । विन्ध्यक्षेत्र में माँ को विन्दुवासिनी अर्थात विंध्यवासिनी के नाम से भक्तों के कष्ट को दूर करने वाला माना जाता है । आरोग्य व दीर्घायु का आशीर्वाद देने वाली माँ ब्रह्मचारिणी सभी के लिए आराध्य है । नौ दिन में माँ सभी भक्तों के मनोकामना को पूरा करती है । इस गृहस्थ जीवन में
जिस – जिस वस्तुओं की जरूरत प्राणी को होता है वह सभी प्रदान करती है | माँ की सविधि पूजा अर्चना कर जप करने वाले भक्तो की सारी मनोकामना पूरी होती है –
माता दर्शन करने के लिए भक्तों का ताँता लगा है । आदि शक्ति माँ विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए भक्त पिछले कई सालों से आते रहे है । दूर दराज से आने वाले भक्त दिनों तक विंध्याचल क्षेत्र में ही निवास कर मां की आराधना पूरे तन मन से करते हैं जिससे प्रसन्न होकर माँ उनकी सभी मुरादें पूरी करती है । विंध्य कॉरिडोर के निर्माण को लेकर विंध्य धाम की बदली तस्वीर को देख भक्त काफी खुश हैं। कष्टों से छुटकारा पाते हैं । माता के किसी भी रूप में दर्शन करने मात्र से प्राणी के शरीर में नयी उर्जा, नया उत्साह व सदविचार का संचार होता है । माँ के धाम में आने के बाद माँ की मनोहारी दर्शन कर भक्तो को परम शांति मिलती है।
रिपोर्ट- विद्या प्रकाश भारती