उत्तराखण्ड का प्रवेश द्वार जसपुर विधानसभा आज भी विकास की रोशनी के लिये तरस रहा है।

देहरादून। घोषणाओं और चुनावी वादों की विधानसभा रही है जसपुर, यहां जिन बुनियादी सुविधाओं की जरूरत है वो राजनीतिक खींचतान के चलते कभी पूरी नहीं हुई, और जो कुछ शुरू भी हुई वो भी राजनीति की भेंट चढ गयी और योजनाएं अधर में लटक रह गयी, इसी राजनीतिक खींचतान में पीस रही जनता फिर से 2022 के चुनावों में अपना खेवनहार तलाश तो रही है, लेकिन क्या इस बार जनता का फैसला उनको विकास की मुख्यधारा से जोड पाता है या फिर विकास राजनीतिक दलों की भेंट चढ़ता है, देखिए हमारी खास रिपोर्ट।

उत्तराखण्ड का प्रवेश द्वारा कहें या कहें कि जिला उधमसिंह नगर का बार्डर, जो पूरी तरह से उत्तर प्रदेश के कई जिलों की सीमा से सटा है, वो है जसपुर, ये विधानसभा दरअसल बडी खास है, कांग्रेस का गढ़ रही ये विधानसभा राज्य बनने के बाद से ही उपेक्षित रही है, यहां शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ ही रोडवेज बस स्टेंड और एक अदद स्टेडियम जैसी मांगों तक ही जरूरत सीमित है, बावजूद इसके यहां से चुनने वाले जनप्रतिनिधियों ने चुनावों तो जनता से बडे बडे वादे किये लेकिन जीतने के बाद वो वादे कभी पूरे नहीं हो पाये, दरअसल यहां विधायक ज्यादातर विपक्ष की पार्टी के रहे लिहाजा विकास न होने का ठींकरा सत्ता पर फूटता रहा, 2017 के चुनावों में भी यही हुआ और जसपुर से कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया, लेकिन सत्ता भाजपा की तो जाहिर है कि घोषणाओं को अमलीजामा क्यों नहीं पहनाया जा सका।

जनता जिस विकास की आस में बैठी थी वो तो मिला नहीं, मिला तो सिर्फ राजनीतिक दलों की आपसी जंग, जिसके चलते कई योजनाएं धरातल पर नहीं उतर पाई और कुछ शुरु होने ही नहीं दी, अब इसके लिए विधायक भले ही सरकार को जिम्मेदार ठहरायें, लेकिन भाजपा के अनुसार विधायक विकास करने में नाकाम रहे, जबकि भाजपा का दामन छोड़ बसपा में शामिल हुए अजय अग्रवाल भी जसपुर में विकास न होने के पीछे सत्ता को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

सत्ता और विपक्ष की नूराकुश्ती में पीसती गयी जसपुर की जनता और विकास के सिर्फ चुनावी मंचों तक ही सिमट कर रह गये दावे, ये हाल रहा जसपुर विधानसभा का, जहां योजनाएं भाजपा और कांग्रेस की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की भेंट चढ गयी, और ठगी गयी तो सिर्फ जनता, जिसने वोट तो दिया, लेकिन उस वोट के बदले जो विकास चाहती थी वो नहीं मिल पाया, एसे में एक बार फिर चुनावी दंगल में नये नये वादों और नई घोषणाओं के साथ कई चेहरे चुनावी मैदान में है, लेकिन देखना होगा कि इस बार जनता किसको अपना नेतृत्व देती है।

रिपोर्ट-सुनील सोनकर