Baghpat News: दस साल बागपत सीट पर विजयी रही भाजपा ने रालोद को लौटायी सीट,जयंत चौधरी ने बागपत में दिया संघ के प्रचारक सरीखा उम्मीदवार नल और कमल मिल कर लिखेंगे जीत की कहानी।
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Baghpat News: देश की राजधानी दिल्ली की सीमा से सटा बागपत अपने प्राचीन और आधुनिक दोनों इतिहासों के लिए जाना जाता है । बागपत उन्ही पांच पतों में से एक है जो पांडवों ने कौरवों से मांगे थे ।ये पांच पत थे सोनीपत , पानीपत , इंद्रपत ( इंद्रप्रस्थ, वर्तमान दिल्ली ) , तिलपत और बागपत । कौरवों ने जब पांडवों को ये पांचो पत देने से माना कर दिया तो महाभारत का युद्ध हुआ । बागपत द्वापर युग से महत्वपूर्ण रहा है । और आधुनिक राजनीति के हिसाब से देखें तो बागपत आज भी सत्ता का मार्ग तय करता है।
भले ही उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से एक सीट है इसके जाट वोट बैंक का क्या महत्व है वो यहां के जाट चुनाव के समय अच्छे से समझा देते हैं । किसी भी दल को यहां से चुनाव लड़ना है तो उम्मीदवार जाट ही बनाना पड़ेगा । इस सीट के 57 वर्ष के इतिहास में केवल एक बार गैर जाट सांसद रहा है । जाट समुदाय अपनी एकता के लिए जाना जाता है । उत्तर भारत में एक कहावत है सौ जाट की एक मां यानी जाट समुदाय के लोग अपनी बिरादरी के लोगों को अपना सगा संबंधी मानते हैं । उत्तर प्रदेश की जाट लैंड में विशेषकर बागपत में तो जाट राजनीति का बोलबाला है । इनका आपसी नेटवर्क बहुत मज़बूत हैं गोत्रों के अनुसार इनकी खाप हैं जब भी बिरादरी के मान सम्मान की विषय आता है या कोई ऐसा फैसला लेना हो जिसमें ज़रा सा भी संशय हो तो जाट अपनी अपनी खापों की बैठ बुलाते हैं । ज्यादा बड़ा मुद्दा हो तो महाखाप बुलायी जाती है । खापों के मुखिया मिल कर जो फैसला लेते हैं वो पूरे जाट समाज को आमतौर पर सर्वमान्य होता है कभी कभी कुछ अपवाद हो सकते हैं । यही कारण है कि इस इलाके में चुनाव लड़ते समय राजनीतिक दलों को जाटों की भावनाओं का ध्यान रखना पड़ता है ।
बागपत लोकसभा सीट कई दशक तक भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह और उनके परिवार का गढ़ रहा । चौधरी चरण सिंह साधारण प्रवृति के किसान नेता थे । उनकी सादगी और किसान मुद्दों के प्रति उनके समर्पण के कारण पूरे इलाके में उनका बहुत सम्मान है । उनकी छवि के कारण उनके बेटे स्वर्गीय अजित सिंह और पोते जयंत चौधरी की राजनीति भी चमकी । वैसे 1998 ,2014 ,2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा यहां चौधरी चरण सिंह के परिवार को हराने में सफल रही ।लेकिन भाजपा हो या कांग्रेस सब ने हमेशा जाट को ही अपना उम्मीदवार बनाया ।
इस लोकसभा सीट का इतिहास रोचक है। बागपत लोकसभा सीट का गठन 1967 में किया गया तब से अब तक इस संसदीय क्षेत्र में ये 15 वां आम चुनाव है । पहले चुनाव में यहां से काकोर सिंह शास्त्री निर्दलीय जीत कर संंसद में पहुंचे । भारतीय लोकदल को पहली बार 1977 के चुनाव में जीत मिली चौधरी चरण सिंह सांसद बन कर लोकसभा पहुंचे । इसके बाद 1980 और 1984 के चुनाव में भी वे जीते तीन बार सासंद रहे वे भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे । जाटलैंड के लिए चौधरी चरण सिंह का भारत का प्रधानमंत्री बनना गौरव का विषय था । चौधरी चरण सिंह के बाद उनके बेटे चौधरी अजित सिंह चौधरी 1989 से 2009 तक सात बार सांसद चुने गए । इसी बात से चौधरी चरण सिंह की लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है । इस बीच एक बार 1998 में अजित सिंह को भाजपा के जाट उम्मीदवार सोमपाल शास्त्री ने हरा दिया । यहां ये देखने वाली बात है कि भाजपा उम्मीदवार भी जाट ही थे 2014 के चुनाव में भी भाजपा ने पूर्व आईपीएस और बागपत इलाके के जाट सतपाल सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया । उन्होंने पहले अजित सिंह को 2014 में हराया फिर उनके बेटे जयंत चौधरी को 2019 में हराया । चौधरी चरण सिंह परिवार को दो दशक तक इस सीट से हार का सामना करना पड़ा ।
भाजपा इस सीट पर तीन बार जीत चुकी है इस बार भाजपा ने अपनी रणनीति बदल ली है । सपा का साथ छोड़ कर राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया तो जाट मतदाताओं का रुख ही बदल गया । भाजपा ने चौधरी परिवार की सीट उनको ही लौटा दी । हालांकि भाजपा ने 80 में से केवल दो सीटें रालोद को दी हैं । एक चौधरी परिवार का गढ़ बागपत और दूसरी बिजनौर । बागपत में चौधरी चरण सिंह के निकट सहयोगी रहे डॉ राजकुमार सांगवान गठबंधन के तहत एनडीए के उम्मीदवार हैं उनका चुनाव चिन्ह रालोद का चुनाव हैंड पंप है । ड़ॉ सांगवान अब तक रालोद की राजनीति में पृष्ठभूमि में रह कर काम करते रहे हैं । उन्होंने अपना जीवन चौधरी चरण सिंह उन सपनों को पूरा करने में लगा दिया जो उन्होंने किसानों के लिए देखे थे । सन्मार्ग ने जब बागपत में उनसे उनके चुनाव कार्यालय में मुलाकात की तो एक बेहद विनम्र मृदुभाषी व्यक्तित्व सामने था उनके चुनाव प्रबंधकों ने बताया कि डॉ सांगवान ने चौधरी चरण सिंह के सपनों को पूरा करने के लिए आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया । वे मेरठ में एक छोटे से कमरे में रहते हैं बहुत सादा जीवन बिताते हैं उनकी जीवन शैली की तुलना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के किसी भी समर्पित प्रचारक से की जा सकती है ।
इंडियापोस्ट न्यूज़ ने 2022 के विधानसभा चुनाव में भी बागपत का सघन दौरा किया था उस समय किसान आंदोलन का जाटों पर प्रभाव था ।रालोद का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ था । अब चुनावी वातावरण बिल्कुल बदला हुआ है । रालोद भाजपा के संयुक्त बैनर होर्डिंग लगे हैं । एनडीए उम्मीदवार राजकुमार सफेद पायजामा कुर्ता पहने थे उनके गले में जो पटका था वो बदली फिजा की कहानी कह रहा था । उनके गले से लटके पटके का दांया हिस्सा सफेद रंग का हरी किनारी वाला है जो रालोद का रंग है और उस पर जयंत चौधरी की तस्वीर और रालोद का चुनाव चिन्ह हैंडपंप है । बांयी तरफ का हिस्सा भाजपा के केसरिया और हरे रंग का है जिस पर भाजपा का चुनाव चिन्ह कमल बना है। ये दोनों दलों की एकता की अद्भूत कहानी कहता है ।
दिल्ली सहारनपुर रोड पर बागपत के तीन मंजिला भवन के पहले तले से लेकर ऊपर तक सफेद धोती कुर्ते अथवा पायजामे कुर्तें में जाटों का जमावड़ा था । उन्होंने कहा हमारे सात साल के बच्चे के मन भी चौधरी चरण सिंह का नाम लिखा रहता है । चौधरी चरण सिंह के उम्मीदवार को जीताने के लिए पूरा जाट समुदाय एक जुट है और इस बार भाजपा का वोट बैंक पूरे का पूरा रालोद को वोट देगा । अब आपकी सरकार से किसानों के मुद्दों को लेकर नाराज़गी दूर हो गयी पूछने पर वे एक सुर में कहते हैं हमारे जयंत चौधरी जहां है हम सब वहीं है हमारे लिए पहले हमारे चौधरी चरण सिंह हैं बाकी सब बाद में । जो जाट 2022 में अलग भाषा बोल रहे थे अब उनके सुर बदले हुए हैं । बागपत के मन में क्या है ये आसानी से जाना और समझा जा सकता है ।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव रालोद से बिछड़े तो उम्मीदवारों को लेकर अलटी पलटी मारते रहे । अपने उम्मीदवारों को लेकर वे दुविधा में रहते हैं । बागपत सीट पर पहले उन्होंने मनोज चौधरी को टिकट दिया जो जाट हैं बाद में नामांकन से पहले उनका टिकट काट कर ब्राह्मण अमरपाल शर्मा को अपना उम्मीदवार बना लिया । अमरपाल शर्मा साहिबाबाद सीट से विधायक हैं । बागपत ने कभी सपा और बसपा को उम्मीदवार को आज तक विजयी नहीं बनाया । दोनों के राज्य में सरकारें रहीं तब भी नहीं । इस बार टिकट देने फिर काटने को लेकर सपा कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों में बहुत नाराजगी है । जनता के बीच अखिलेश यादव के बार बार उम्मीदवार बदलने से गलत संदेश गया है । इसका नुकसान सपा को उठाना पड़ेगा। एक तो जाटलैंड में ब्राह्मण को टिकट दूसरे टिकट बंटवारे में अपना ही फैसला पलट देना । ये केवल बागपत नहीं और भी कई सीटों की कहानी है । सपा और कांग्रेस के गठबंधन में ये सीट सपा के हिस्से में आयी है । दोनों दलों को अपने मुस्लिम वोट बैंक पर भरोसा है बसपा उम्मीदवार उनके दलित वोट बैंक में सेंध लगाएगा । अमरपाल शर्मा से मुलाकात होना संभव नहीं हो पाया क्योंकि अखिलेश यादव ने उनको लखनऊ तलब कर रखा था ।
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