Electoral Bond: चुनावी बांड पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को सौपा बड़ा काम, जाने आदेश की बड़ी बातें

Electoral Bond: इलेक्ट्रोरल बाॅंड को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है। मोदी सरकार की ओर से साल 2017 में लाई गई यह योजना राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी बनाने के दावे के साथ लाई गई थी।

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Electoral Bond: मगर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा नहीं माना है कोर्ट ने कहा कि नागरिकों को चुनावी जनता जानने का अधिकार है और यह कानून सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।

अब आईए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कुछ कहा

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया है। इस तरह तत्काल प्रभाव से चुनावी बांड पर रोक लग गई है। चुनावी बांड योजना का संवैधानिक कर दिया जाना केंद्र सरकार के लिए एक बड़े झटका के तौर पर माना जा रहा है।

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया मतलब एसबीआई को यह जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी और चुनाव आयोग इस जानकारी को लोगों के साथ साझा करेगा एसबीआई को जानकारी 12 अप्रैल 2019 से सार्वजनिक करनी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि आयकर अधिनियम प्रावधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 C में संशोधन और संवैधानिक है इलेक्टोरल बॉन्ड को लाने के लिए भारत सरकार ने करीब पांच संशोधन किए थे।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहां है कि चुनावी बांड के जरिए ब्लैक मनी वाइट की जा रही है और चुनावी बांड सिस्टम पारदर्शी नहीं लिया जा रहा है। एसबीआई चुनावी बांड जारी नहीं कर पाएगी। एसबीआई चुनाव आयोग से 6 मार्च तक जानकारी साझा करेगी। साथ ही एसबीआई को दान के रसीद के साथ एक हफ्ते में सार्वजनिक करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रोलर बांड का सूचना के अधिकार और अधिनियम 19 अनुच्छेद ए का उल्लंघन पाया। कोर्ट ने कहा है कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जनता को जानने का अधिकार है इस तरह मनी बिल के जरिए लाया गया भारत सरकार का फैसला कोर्ट सही नहीं मानती।

चुनावी पारदर्शिता को लेकर काम करने वाली संस्था संगठन का डेमोक्रेटिक रिफॉर्म लगातार हर साल अपनी रिपोर्ट जारी करता है जिसके मुताबिक बीजेपी को इस स्कीम से सबसे ज्यादा चुनावी फल चंदा मिला है।

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