Khaki Vs Khadi: यह पहला मामला नहीं है जब कोई खड़ी वाला खाकी वाला खादी पहनने के लिए मैदान में कूद पड़ा हो पहले भी कई अधिकारी खादी पहनने के लिए खाकी को त्याग चुके हैं। जी हां इस बार हम बात कर रहे हैं स्वैक्षिक सेवानिवृत्ति लेने के 1 महीने बाद पुलिस अधिकारी बृजकिशोर रवि (Brijkishor Ravi) ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।
Khaki Vs Khadi
Khaki Vs Khadi: तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक रहे बृजकिशोर रवि (Brij Kishor Ravi) बिहार (Bihar) से लोकसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी में है। कांग्रेस उन्हें खगडिया या फिर समस्तीपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा सकती है। 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी रवि मूल रूप से बिहार के सहरसा के रहने वाले हैं। तमिलनाडु (Tamilnadu)पुलिस विभाग में कई बड़े पदों पर रह चुके हैं। राजनीति में आने के कारण उन्होंने 3 महीने पहले ही अपनी नौकरी को छोड़ दी। वे दिसंबर में रिटायर होने वाले थे।
तमिलनाडु के एक और पूर्व अधिकारी करुणा सागर ने हाल ही में बिहार के सत्तारुढ पार्टी आरजेडी का दामन थामा है। करुणा सागर जहानाबाद सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वर्तमान में यह सीट जदयू के खाते में है। यह पहला मौका नहीं है जब कोई खाकी वाला खादी पहनने के लिए मैदान में कूद पड़ा हो । पहले भी कई अधिकारी खादी पहनने के लिए खाकी को त्याग चुके हैं इसमें कई सफल भी हुए तो क्यों को भगवा पहनना पड़ा यानी संन्यास लेना पड़ा।
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आईए जानते हैं कौन है बृज किशोर रवि
तमिलनाडु कैडर के आईपीएस अधिकारी ब्रिज किशोर रवि बिहार के कद्दावत दलित नेता तुलमोहन राम के बेटे हैं। तुलमोहन राम 1967 और 1971 में अररिया सीट से कांग्रेस के सांसद थे तुलमोहन राम स्वतंत्रता सेनानी भी थे हालांकि रेल और आयात से संबंधित एक घोटाले के आप की वजह से उनकी राजनीतिक करियर ढलान पर चला गया। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि वह तूल मोहन राम ही थे जिनकी वजह से देश में पहली बार संसद की कार्रवाई ठप हुई। अब बात करते हैं बृज किशोर रवि की तो रवि तमिलनाडु पुलिस की ओर से संयुक्त राष्ट्र शांति सेवा में भी रह चुके हैं रवि तमिलनाडु के विजिलेंस नागरिक सेवा अग्निशमन विभागों में महानिदेशक रह चुके हैं सहरसा से ही शुरुआती पढ़ाई करने वाले रवि पटना विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में बीए और दिल्ली स्कूल आफ इकोनॉमिक्स नई दिल्ली एम से पढाई किया है।
खाकी छोड़ खाकी थामने वाले अधिकारी
अजय कुमार कांग्रेस के नेता डॉ अजय कुमार (Dr. Ajoy Kumar) भी भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी थे। 1996 में जमशेदपुर के एसपी रहने के दौरान उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। अजय नौकरी छोड़ने के बाद टाटा ग्रुप के साथ जुड़ गए 2011 में अजय ने राजनीति में एंट्री ली । बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम में शामिल होकर उन्होंने जमशेदपुर लोकसभा के उपचुनाव में उतर गए ।उन्होंने इस चुनाव में बीजेपी के दिनेश आनंद गोस्वामी को 155000 वोटो से हराया ।अजय को कांग्रेस ने झारखंड प्रदेश का अध्यक्ष भी बनाया लेकिन स्थानीय नेताओं से पटरी नहीं बैठ पाने क की वजह से वह दिल्ली की राजनीति करने लगे।
गुप्तेश्वर पांडे बिहार के तेज तर्रार आईपीएस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडे (Gupteshwar Pandey) बिहार चुनाव 2020 से पहले पुलिस सेवा छोड़ जदयू में शामिल हो गए थे। पुलिस सेवा छोड़ते वक्त में महानिदेशक पद पर थे। जदयू में शामिल होने के बाद गुप्तेश्वर बक्सर सीट पर चुनावी तैयारी करने लगे लेकिन और वक्त पर जेडीयू ने उन्हें टिकट नहीं दिया। जदयू से टिकट नहीं मिलने के बाद गुप्तेश्वर राजनीति से संन्यास लिया और भागवत कथा करने लगे।
सुनील कुमार बिहार सरकार में मंत्री सुनील कुमार (Sunil Kumar) भी पुलिस सेवा के बाद राजनीति में आए। सुनील के पिता चंद्रिकाराम भी बिहार सरकार में मंत्री थे। सुनील पुलिस के डीजी पद से रिटायर हुए। इसके बाद वह जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए सुनील कुमार 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी थे बिहार में शराबबंदी लागू करने में सुनील कुमार की अहम भूमिका थी वर्तमान में भी उनके पास मध्य निषेध विभाग है।
असीम अरुण योगी कैबिनेट में मंत्री असीम अरुण 2022 चुनाव से पहले खाकी छोड़ खादी धारण करने के लिए राजनीति में कूद गए। युपी कैडर के आईपीएस अधिकारी असीम अरुण (Aseem Arun) वीआरएस लेते वक्त कानपुर के पुलिस आयुक्त थे। असीम अरुण कन्नौज सीट से विधायक की जीते इसके बाद पार्टी ने उन्हें योगी सरकार में मंत्री बनाया । अरुण काफी विवादों में भी रहे सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने उन पर कन्नौज लोकसभा चुनाव में धांधलेबाजी करने का आरोपी लगाया था।
राजेश्वर सिंह सरोजिनी नगर सीट से विधायक राजेश्वर सिंह (Rajeshwar Singh) भी 2022 के उप चुनाव से पहले खादी पहनने के लिए मैदान में कूद पड़े। उन्होंने ईडी के संयुक्त निदेशक पद से वीआरएस लिया था। राजेश्वर सिंह पीपीएस अधिकारी थे 2007 में ईडी में शामिल होने के लिए केंद्रीय प्रति नियुक्ति पर चले गए थे। राजेश्वर की पत्नी लक्ष्मी सिंह भी पुलिस अधिकारी हैं। उनके पिता रण बहादुर सिंह भी पुलिस अधिकारी थे।
हुमायूं कबीर बंगाल सरकार के मंत्री हुमायूं कबीर (Humanyu Kabeer) भी राजनीति में आने से पहले खाकीधारी थे। उन्होंने 2021 चुनाव से पहले वीआरएस लिया उस वक्त भी चंद्रनगर पुलिस के आयुक्त पद पर तैनात थे। 2003 बैच के आईपीएस अधिकारी कबीर 2021 के चुनाव में पश्चिम मेदिनीपुर के देवरा सीट से चुनाव जीत का सदन पहुंचे। इसके बाद ममता बनर्जी उन्होंने कैबिनेट में शामिल कराया।
के अन्नामलाई तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष के अन्नामलाई (K Annamallai) भी राजनीति में आने से पहले पुलिस अधिकारी थे। के अन्नामलाई 2011 बैच के कर्नाटक कैडर के अधिकारी थे । उन्होंने 2020 में नौकरी छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। पार्टी ने 2021 चुनाव के बाद उन्हें तमिलनाडु बीजेपी का अध्यक्ष बनाया। अन्नामलाई 2017 से चिकमंगलूर दंगा के बाद सुर्खियो में आए थे। दंगे के समय अन्नामलाई चिकमंगलूर के एसपी थे और सरकार ने उनकी भूमिका को संदिग्ध माना था । बीजेपी में आने के बाद अन्नामलाई तमिलनाडु के सियासत में जड़े जमाने में जुटे हैं हालांकि उनकी पदयात्रा काफी सुर्खियां बटोरी थी।
आखिर खाकी की तरफ क्यों भाग रहे हैं अधिकारी आईए जानते हैं–
पूर्व पुलिस अधिकारी और कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि आईपीएस सेवा से राजनीति में आने की वजह है शक्ति का दायरा सियासत में जब आप आते हैं तो कम से लेकर शक्ति तक का दायरा बढ़ जाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस सेवा के दौरान ऐसा नहीं है कि आप किसी पद पर है तो संबंधित काम ही कर सकते हैं अगर सरकार नहीं चाहेगी तो आप संटिंग जोन में जा सकते हैं।
खादीधारियो की तरफ आकर्षित होने की एक वजह तुरंत बाद पद मिलना भी है। उदाहरण के तौर पर अधिकांश अधिकारी खाकी धारी या तो मंत्री बन गया संसद पहुंच गए। पुलिस अधिकारी रे निखिल कुमार कांग्रेस शासन में राज्यपाल भी बनाए गए वर्तमान में बिहार बंगाल उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व पुलिस अधिकारी मंत्री बनाये गये ।
यही वजह है कि खाकीदारी खादी की तरफ आकर्षित हो रहे है।
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Report: Mamta Chaturvedi