Rahul Gandhi: वर्तमान समय में राहुल गांधी की पप्पू वाली छवि बदल रही है ?

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Rahul Gandhi: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी कैसे बनते जा रहे हैं BJP के लिये घातक ? क्या राहुल गांधी की इमेज खराब करने की कोशिश होने लगी नाकाम ?

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Rahul Gandhi: किसी ने सच हीं कहा है कि…..
कल सियासत में भी मोहब्बत थी
अब मोहब्बत में भी सियासत है ।


अगर हम अभी से 9 साल पहले की बात करें तो जिस तरह केन्द्र में बीजेपी की सरकार ने अपनी पकड़ बनाई, उसको लगातार और मजबूत करती गई। आज से 6 महीना पहले तक केन्द्र में बीजेपी के अलावा कोई विकल्प नहीं नजर आ रहा था। लेकिन पिछले 6 महीनों में कई राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों नें बीजेपी के विजय की धार को कमजोर करने की कोशिश तेज कर दी है।


इस दौरान संसद भवन से लेकर बाहर तक राहुल गांधी की छोटी मोटी गलतियों को बड़ा दिखाकर उन्हें “पप्पू” कहकर जनता के बीच ये प्रचारित करने की कोशिश की गई कि राहुल गांधी में नेतृत्व की क्षमता नहीं है। वक्त के साथ साथ धीरे धीरे जब जनता यह समझने लगी कि वास्तव में राहुल गांधी को पप्पू के नाम से प्रचारित करना एक सोची समझी चाल है। उसके बाद से ये शब्द भी गायब हो गया।


हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में मिली कांग्रेस की जीत नें एक बार फिर से कांग्रेस के लिये खाद पानी का काम किया। ठीक उसी समय राहुल गांधी ने भारत जोड़े यात्रा भी शुरु की थी। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक इस यात्रा से राहुल गांधी की छवि और निखरी। हालांकि सोशल मीडिया पर उनके आलोचक उनकी छवि को खराब करने में लगातार लगे रहे।
ठीक इसी समय बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना के मुद्दे पर पूरे विपक्ष को एकजुट करने की मुहीम शुरु कर दी। ये ऐसा मुद्दा था जो कांग्रेस के लिये संजीवनी का काम कर सकता था। कांग्रेस ने समय पर इस मुद्दे को पकड़ लिया। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन योजना, महंगाई, किसानों की कर्जमाफी और बेरोजगारी जैसे मुद्दो के दम पर जीत हासिल की। इससे कांग्रेस का मनोबल और बढ़तागया।


लेकिन अभी हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन योजना, महंगाई, किसानों की कर्जमाफी और बेरोजगारी जैसे मुद्दो के अलावा जातीय जनगणना के मुद्दे को हवा देकर एक बार फिर से राजनीतिक उथल पुथल मचा दी है। इस बात का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब नीतीश कुमार ने बिहार मे कराये गये अपने जातीय सर्वेक्षण को आधार बनाकर आरक्षण का दायरा 75% करने का कानून विधान सभा में पारित कराया तो मजबूरी में बीजेपी को भी साथ देना पड़ा।


इसके बाद ये देखा गया कि राहुल गाधी ने कभी सब्जी मार्केट में औचक जाकर महंगाई, सब्जी विक्रेता और किसानों के मुद्दो को उठाया तो कभी गैराज में जाकर मैकेनिक और बाईक रिपेयर करने वाले मिस्त्री लोगों से बात की। ट्रक ड्राईवरों के साथ उनकी ट्रक की सवारी ने भी काफी सुर्खियां बटोरी। उसके बाद वो हरियाणा और छत्तीसगढ़ में किसानों के साथ मजदूर बनकर फसल काटते नजर आये। फिलहाल विधानसभा के चुनाव प्रचार में सभी विपक्षी नेताओं के हमले का सामना करते हुए अकेले उनके जवाब दे रहे हैं राहुल।


3 दिसम्बर को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम आने हैं। राजनीतिक दलों के अलावा सभी राजनीतिक जानकारों की निगाहें इस परिणाम पर टिकी हुई हैं। इसका कारण यह है कि ये परिणाम हीं अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की दिशा और दशा तय करेगा। हालांकि बीजेपी और कांग्रेस अपनी अपनी जीत के दावे कर रही हैं लेकिन जनता की खामोशी ने इस रिजल्ट को और रोचक जरुर बना रखा है।


अगर 3 दिसम्बर को कांग्रेस मजबूत बनकर उभरती है तो इसके बाद बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसके साथ हीं इंडिया गठबंधन के जो भी सहयोगी अभी कांग्रेस को महत्व नहीं दे रहे हैं उनकी सोच में भी बदलाव देखने को मिल सकता है। हालांकि राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव होता है। इसके लिये हमें 3 दिसम्बर तक और प्रतिक्षा करनी होगी।

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