Saif Ali Khan: देश में नवाबों और राजा-महाराजाओं का अब दौर ही नहीं रहा, फिर भी सैफ अली खान पटौदी के नवाब कहे जाते हैं। दरअसल, उनका परिवार कभी पटौदी रियासत पर राज करता था और खुद उनके पिता औपचारिक रूप से पटौदी के आखिरी नवाब थे।
Saif Ali Khan
असल में सैफ के खानदान में उनके पिता को लेकर कुल नौ नवाब हुए। 10वें नवाब के रूप में सैफ को भी साल 2011 में पगड़ी पहनाई गई थी। इसमें 52 गांवों के मुखिया शामिल हुए थे। इस सम्मान समारोह में सैफ की मां शर्मिला टैगोर, बहनें सोहा और सबा अली खान भी शामिल हुई थीं। वहीं जब से ऐतिहासिक संपत्ति की बात सामने आई तब से ही लोगों इनकी पटौदी रियासत के बारें में जानना चहाते हैं आज हम आपको इस अर्टिकल पटौदी परिवार के बारे में बाताएंगे।
हरियाणा के गुड़गांव से 26 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों में बसे पटौदी रियासत का इतिहास करीब 200 साल पुराना है। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान और पटौदी रियासत के 9वें नवाब मंसूर अली उर्फ टाइगर की मौत के बाद 2011 में उनके बेटे सैफ अली खान यहां के 10वें नवाब बने थे। पटौदी रियासत की स्थापना सन् 1804 में हुई, जिसके पहले नवाब सैफ के पूर्वज फैज तलब खान थे।
मुगलों से तोहफे में मिली थी दिल्ली व राजस्थान की जमीनें
सैफ अली खान के पुरखे सलामत खान सन् 1408 में अफगानिस्तान से भारत आए थे। सलामत के पोते अल्फ खान ने मुगलों का कई लड़ाइयों में साथ दिया था। उसी के चलते अल्फ खान को राजस्थान और दिल्ली में तोहफे के रूप में जमीनें मिलीं। 1917 से 1952 इफ्तिखार अली हुसैन सिद्दिकी, पटौदी रियासत के आठवें नवाब बने थे। इफ्तिखार अली क्रिकेटर भी रहे हैं। वे पहले इंग्लैंड टीम की तरफ से खेले और बाद में भारतीय टीम के कप्तान बनें।इफ्तिखार की मौत के बाद पटौदी रियासत के 9वें नवाब मंसूर अली उर्फ टाइगर बनें। वे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी चुने गए। सितंबर 2011 में फेफड़ों की बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। पिता की मौत के बाद सैफ अली खान की 10वें नवाब के रूप में ताजपोशी हुई।
किताब में भी मिलता है जिक्र
वीपी मेनन की एक किताब दै द स्टोरी ऑफ द इंटिग्रेशन ऑफ द इंडियन स्टेट्स। इस किताब में वीपी मेनन ने लिखा है पटौदी उन कई राज्यों में से एक था, जिसे लॉर्ड लेक ने पुरस्कार के रूप में शासक परिवारों के संस्थापकों को सौंपा था। इनके शासकों ने देश को आजादी मिलने के बाद भारत में विलय पर सहमति जताई थी और उसके कागजात पर दस्तखत किए थे। इस तरह से ये भारतीय संघ का हिस्सा बन गए और तब इनको प्रिवी पर्स दिया गया था। प्रिवी पर्स के तहत इन शासकों को हर महीने सरकार की तरफ से अच्छी-खासी धनराशिदीजातीथी।
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