सब्जी काटने वाले चाकू से बाईपास सर्जरी कभी नहीं करें, मेरे खिलाफ लाया गया नोटिस तो सब्जी काटने वाला चाकू भी नहीं था, उसमें तो जंग लगा हुआ था: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

देश विरोधी ताकतों द्वारा संवैधानिक संस्थानों को ईंट-दर-ईंट कमजोर करने के प्रयास: उपराष्ट्रपति की चेतावनी

संवैधानिक पदों की गरिमा को प्रतिष्ठा, उच्च आदर्श और संवैधानिकता से बनाए रखना आवश्यक: उपराष्ट्रपति

लोकतंत्र की सफलता के लिए अभिव्यक्ति और संवाद अपरिहार्य हैं: उपराष्ट्रपति

महिला पत्रकार अद्वितीय दृष्टिकोण लाती हैं: उपराष्ट्रपति

महिला पत्रकार वेलफेयर ट्रस्ट के कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति का संबोधन

उपराष्ट्रपति ने आज अपने खिलाफ़ लाए गए नोटिस पर पहली बार टिप्पणी करते हुए कहा, “उपराष्ट्रपति के खिलाफ दिए गए नोटिस को देखिए। उसमें दिए गए छह लिंक को देखिए। आप हैरान हो जाएंगे। चंद्रशेखर जी ने एक बार कहा था, ‘सब्जी काटने वाले चाकू से बाईपास सर्जरी कभी नहीं करें।’ यह नोटिस तो सब्जी काटने वाला चाकू भी नहीं था, वह तो जंग लगा हुआ था। इसमें जल्दबाजी की गई। जब मैंने इसे पढ़ा तो मैं स्तब्ध रह गया। लेकिन मुझे और अधिक आश्चर्य तब हुआ जब पाया कि आपने इसे नहीं पढ़ा। अगर आप इसे पढ़ते तो कई दिनों तक सो नहीं पाते,” उन्होंने टिप्पणी की।

महिला पत्रकार वेलफेयर ट्रस्ट के एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में महिला पत्रकारों को संबोधित करते हुए  धनखड़ ने कहा, “मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह नोटिस क्यों दिया गया। किसी भी संवैधानिक पद को प्रतिष्ठा, उच्च आदर्शों और संवैधानिकता से पुष्ट किया जाना चाहिए। हम यहां हिसाब बराबर करने के लिए नहीं हैं।

जब राज्यसभा में वर्तमान विपक्ष के नेता राहुल गांधी का मामला उठा] “तब सदन के नेता पीयूष गोयल ने यह मुद्दा उठाया। मैंने इसे तय किया। इसे पढ़िए। अगर इसमें कुछ गलत है, तो मुझे मार्गदर्शन मिलने में खुशी होगी। उन्होंने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई। लेकिन वे यह पचा नहीं पाए कि अध्यक्ष ने ऐसा फैसला कैसे किया?”

धनखड़ ने आगे कहा कि अभिव्यक्ति का अधिकार लोकतंत्र की परिभाषा है और जोड़ा, “यदि अभिव्यक्ति को सीमित, बाधित या दबाव में किया जाए, तो लोकतांत्रिक मूल्य दोषपूर्ण हो जाते हैं। यह लोकतंत्र के विकास के लिए प्रतिकूल है।” उन्होंने संवाद के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “आप अपनी आवाज का उपयोग करने से पहले, अपने कानों को दूसरे के दृष्टिकोण को सुनने दें। इन दोनों तत्वों के बिना, लोकतंत्र को न तो पोषित किया जा सकता है और न ही इसे फलने-फूलने दिया जा सकता है।”

राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने के प्रयासों के खिलाफ चेतावनी देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “अक्सर मैंने खुद देखा है कि यह प्रयास एक योजनाबद्ध तरीके से उन ताकतों द्वारा किए जाते हैं जो इस देश के हितों के प्रति शत्रुतापूर्ण हैं। उनका उद्देश्य हमारे संवैधानिक संस्थानों को ईंट-दर-ईंट कमजोर करना, राष्ट्रपति पद को कलंकित करना है। और सोचिए, राष्ट्रपति कौन हैं? इस देश की पहली आदिवासी महिला जो राष्ट्रपति बनीं,” उन्होंने कहा।

संसदीय बहसों की स्थिति पर विचार व्यक्त करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “क्या आपने पिछले 10, 20, 30 वर्षों में किसी महान बहस को देखा है? क्या संसद के पटल पर कोई बड़ी उपलब्धि देखी है? हम गलत कारणों से समाचार में हैं। दबाव आपके वर्ग से आना चाहिए। जवाबदेही मीडिया द्वारा लागू की जानी चाहिए, जो लोगों तक पहुंचने का एकमात्र माध्यम है। मीडिया जनता के साथ एक रिश्ता बना सकता है और जन प्रतिनिधियों पर दबाव पैदा कर सकता है।”

मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका पर ध्यान केंद्रित करते हुए उपराष्ट्रपति ने पत्रकारों की जिम्मेदारी को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “पत्रकारिता एक कठिन कार्य है। पत्रकारिता के मूल्यों को बनाए रखने के लिए, अनुसंधानात्मक पत्रकारिता करने के लिए और उन क्षेत्रों में देखने के लिए जहां सरकार आपको देखने नहीं देना चाहती, एक वेलफेयर ट्रस्ट और एक मजबूत कानूनी निकाय आवश्यक है जो आपके हितों की रक्षा करे।”

उपराष्ट्रपति ने भारत और विश्व स्तर पर महिला पत्रकारों और एंकरों के योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा, “महिला पत्रकार अद्वितीय दृष्टिकोण लाती हैं, और उनकी संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है। यह समय की बात है जब यह क्षेत्र महिलाओं का प्रभुत्व होगा। आपके लिए चुनौतियां ही आपके अवसर हैं,” उन्होंने कहा।

धनखड़ ने भारत की तीव्र आर्थिक प्रगति और इस परिवर्तनकारी यात्रा में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा, “हम अब विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, और अगले एक या दो वर्षों में जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर आ जाएंगे। एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए हमारी आय को आठ गुना बढ़ाना होगा। यह एक कठिन कार्य है, लेकिन यह संभव है।”

उन्होंने कहा, “मुझे कोई संदेह नहीं है कि भारत, जो असामान्य रूप से आशा और संभावना के माहौल को देख रहा है, उसमें आपकी भूमिका महत्वपूर्ण है। आपके लिए चुनौतियां ही आपके अवसर हैं। इस पेशे में आपको विघटनकारी तकनीकों से निपटना होगा। आपको इसका सामना करना होगा और इसे तेजी से सीखना होगा। क्योंकि कथाओं को केवल सनसनी पैदा करने के लिए पंख दिए जाते हैं।”

उपराष्ट्रपति ने महिला आरक्षण विधेयक पर भी चर्चा की और इसे ऐतिहासिक विकास बताया। उन्होंने कहा, “2023 में, तीन दशकों की विफलताओं के बाद, जहां मंशा थी लेकिन प्रयास नहीं था, एक ऐतिहासिक संवैधानिक संशोधन लागू किया गया।

राज्य विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण अब वास्तविकता है। यह लंबवत और क्षैतिज आरक्षण सभी वर्गों, विशेषकर एससी और एसटी वर्गों, में महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी सुनिश्चित करेगा। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए वास्तव में अमृत काल है।”

जगदीप धनखड़ ने संसद में महिला आरक्षण विधेयक की ऐतिहासिक बहस पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “बहस के दौरान सत्रह महिला सांसदों ने अध्यक्षता की, जो एक उल्लेखनीय मील का पत्थर है। उनका प्रदर्शन उत्कृष्ट था।” उन्होंने यह भी बताया कि राज्यसभा में टेबल आधे से अधिक महिलाओं द्वारा प्रबंधित की जाती है और प्रत्येक सत्र में उपाध्यक्षों के नामांकन में भी यही अनुपात बनाए रखा गया है।

Reported By Mamta Chaturvedi