बलिया, यूपी। अगर आप यू पी के बलिया जिले के बारे में थोड़ा भी जनते हैं तो ये भी जानते हीं होंगे कि इसे बागी बलिया भी कहा जाता है । 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर बलिया का नाम उंच्चा किया था । बाद में उन्हें कोर्ट मार्शल कर फांसी पर चढ़ा दिये गये। उसी समय तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया था। उसी बागी बलिया के कई बीजेपी नेताओं ने होने जा रहे इस विधानसभा चुनाव में बागी रुख अख्तियार कर लिया है।
भाजपा की ओर से प्रत्याशियों की घोषणा के बाद बलिया जिले में सियासी पारा चढ़ गया है। बैरिया विधायक सुरेंद्र सिंह को टिकट नहीं मिला है। भारतीय जनता पार्टी ने बलिया की सभी सीटों पर अपनी स्थिति साफ करते हुए रणबांकुरों को चुनाव मैदान में उतार तो दिया, लेकिन अपनों ने ही घोषित प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ने का एलान कर पार्टी के रणनीतिकारों को पशोपेश में डाल दिया । पार्टी को सबसे ज्यादा परेशानी है बैरिया सीट पर । टिकट कटने के बाद विधायक एवं फायरब्रांड नेता सुरेंद्र सिंह के बगावती तेवर पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं । उनके जदयू में शामिल होने की अटकलें सियासी गलियारों में चल रही है। सुरेन्द्र सिंह ने दावा कर रहे हैं कि बलिया की सभी सात सीटों पर वो बीजेपी को हराकर ही मानेंगे। सियासी समर में भाजपा अपने ही बागी नेताओ से कैसे पार पाएगी ,ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा।
सुरेंद्र सिंह ने साफ कहा है कि उनका टिकट काटने में सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त और भू-माफियाओं का हाथ है। टिकट कटने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कोई दोष नहीं है। कहा कि भू-माफियाओं को सफल नहीं होने दूंगा। गरीबों और मेला की भूमि को कतई कब्जा नहीं करने दूंगा। अपने बयानों के चलते सुर्खियों में रहने वाले बैरिया विधायक सुरेंद्र सिंह की पहचान क्षत्रिय नेता के रूप में भी है। बैरिया थाना क्षेत्र में हुए दुर्जनपुर कांड के बाद जिस तरीके से क्षत्रिय समाज सुरेंद्र सिंह के पक्ष में लामबंद हुआ था। उस देखते हुए ये तो तय है कि कम से कम बैरिया विधानसभा में क्षत्रिय मत प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि भाजपा पदाधिकारियों का कहना है कि क्षत्रिय उनके परंपरागत वोटर हैं।
वहीं बलिया नगर से विधायक राज्यमंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला की सीट बदल दी गई। बलिया नगर से अब पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह और बैरिया विधानसभा से राज्यमंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला को प्रत्याशी घोषित किया गया है।
इधर, बलिया नगर सीट से नागेंद्र पांडेय भी नामांकन करने की घोषणा कर चुके हैं। उधर बलिया के बांसडीह में कनक पांडेय भी नाराज दिख रहे हैं। हालांकि उन्होंने समर्थकों के साथ बैठक के बाद स्थिति स्पष्ट करने की बात कही है। बलिया नगर सीट से नागेंद्र पांडेय ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। ऐसे में भाजपा के पास विद्रोह को थामना और अपनी सीट को बचाना चुनौती होगी। बांसडीह से भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी से केतकी सिंह के प्रत्याशी घोषित होने के बाद एक और दावेदार कनक पांडेय नाराज हो गए हैं। हालांकि उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो बागी बलिया में एक बार फिर से सियासी बगावत के स्वर ऊंचे हो रहे हैं।
इसके अलावा राज धारी सिंह जी कई बार विधायक और एक बार मंत्री रहे हैं । बलिया के सिकंदरपुर विधानसभा में इनका खासा जनाधार है। अपने जाति में भी पकड़ मानी जाती है और बहुत ही मृदुभाषी लोकप्रिय व्यक्ति है और जनता के बीच में रहते हैं। 2017 से पहले वह बीजेपी में शामिल हुए। लेकिन ये भी टिकट नहीं मिलने से बागी रुख अख्तियार कर लिये हैं।
इसके अलावा बलिया के फेफना विधानसभा से अवलेश सिंह कई सालों से मेहनत और जनता की सेवा में लगे थे। लेकिन यहां से वर्तमान विधायक और मंत्री उपेंद्र तिवारी प्रत्याशी हैं । कई सालों से अवलेश सिंह जी सीट की दावेदारी कर रहे थे लेकिन उपेंद्र तिवारी को बीजेपी ने टिकट दिया इससे आंवले सिंह ने बीजेपी को हराने के लिये चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। कुल मिलाकर अगर देखा जाय तो बागी बलिया के नेता अगर अपना यही बागी रुख बनाये रहे तो जिले में बीजेपी के लिये चुनाव जीतना आसान नहीं होगा।
रिपोर्ट- अखिलेश यादव