नई दिल्ली। स्किन टू स्किन टच मामले.पर बॉम्बे.हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द करते हुए कहा कि स्किन टू स्किन कि व्याख्या को पॉक्सो में स्वीकार नहीं किया जा सकता। पॉक्सो एक्ट कि धारा 7 को इस आधार पर नहीं रखा जा सकता। स्किन टू स्किन टच भले ही ना हो, यह निंदनीय है। हम हाईकोर्ट के फैसले को गलत मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को दोषी मानते हुए सजा दी। सुप्रीम कोर्ट का व्यवस्था दी है कि POCSO अपराध के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क आवश्यक नहीं है जैसा कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था। SC ने कहा कि शारीरिक संपर्क को त्वचा से त्वचा के संपर्क तक सीमित रखने का संकीर्ण अर्थ देने से POCSO अधिनियम का उद्देश्य विफल हो जाएगा और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद 30 सितबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा पारित विवादास्पद फैसले के खिलाफ AG केके वेणुगोपाल द्वारा दाखिल याचिका समेत, इस याचिका का समर्थन करते हुए दाखिल अन्य याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि “एक नाबालिग के स्तन को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना POCSO के तहत यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है। इसका मतलब कि यदि यौन उत्पीड़न के आरोपी और पीड़िता के बीच सीधे स्किन टू स्किन का संपर्क नहीं होता है, तो POSCO के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है।
रिपोर्टर-ममता चतुर्वेदी