Sunil Singh Appointment: सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सबसे बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने प्रमुख नेता सुनील सिंह के निदेशक मंडल की नियुक्ति को रद्द करने के फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने इस जज से नीतीश कुमार को बड़ा झटका और पेनल्टी को बड़ी राहत दी है।
Sunil Singh Appointment
सुप्रीम कोर्ट ने सुनील सिंह के आचरण को “घृणित” और “असभ्य” करार दिया, लेकिन निष्कासन की सजा को “अथिक कठोर” और “असभ्य” माना। कोर्ट ने कहा कि यह निष्कासन केवल सिंह के अधिकारों का ही नहीं है, बल्कि उनके अधिकारों का भी उल्लंघन है।
सात महीने का निष्कासन, निलम्बन के रूप में माना जाएगा
अदालत ने निर्णय दिया कि सुनील सिंह को सात महीने के लिए निष्कासन के रूप में निलंबित कर दिया जाएगा और उनके आचरण के लिए दंड दिया जाएगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने विधान परिषद के फैसले में प्रकृति के मामले में केवल हस्तक्षेप किया है, न कि उनके आचरण को दोषी ठहराया गया है।
चुनाव आयोग की अधिसूचना भी रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने सुनील सिंह की सीट पर भारत निर्वाचन आयोग द्वारा जारी अधिसूचना को भी रद्द कर दिया। साथ ही, कोर्ट ने सुनील सिंह को भविष्य में ऐसे बयान देने से बचने की चेतावनी दी।
फैसले में क्या कहा?
दुर्लभ सूर्यकांत और गणतंत्र एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने 29 जनवरी को सुरक्षित रखने का आदेश दिया और उसके बाद यह निर्णय लिया गया। निर्णय के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
विधानमंडल की समीक्षा के अनुसार विधानमंडल के निर्णय अलग-अलग हो सकते हैं – न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विधानमंडल के निर्णय और विधान अलग-अलग होते हैं। संविधान के दिशानिर्देश 212 के तहत धार्मिक समीक्षा पर पूर्ण रोक नहीं है, और संवैधानिक निर्णयों की समीक्षा न्यायिक अधिकारी द्वारा की जा सकती है।
विधान परिषद की आचार समिति के निर्णय धार्मिक समीक्षा से मुक्त नहीं – विधान परिषद की आचार समिति द्वारा दिये गये निर्णय बौद्ध मठ का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए वे धार्मिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं।
सज़ा की समनुपातिकता की समीक्षा की आवश्यकता – न्यायालय ने कहा कि विधान परिषद द्वारा सज़ा की समीक्षा की जा सकती है। अनुचित या अत्याधिक कठोर दंड लोकतांत्रिक विचारधारा के विपरीत होते हैं और लोकतंत्र को भी प्रभावित करते हैं।
सुनील सिंह का व्यवहार अनुचित था, लेकिन निष्कासन अनिर्धारित था – अदालत ने माना कि सिंह का व्यवहार “असभ्य” था, लेकिन विधान परिषद को अधिक सहनशीलता दिखानी चाहिए थी। उनका निष्कासन उनके मौलिक अधिकार और कैथोलिक अधिकारों का उल्लंघन था। दंड का चयन किया जाना चाहिए।
अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का उपयोग – अदालत ने कहा कि वापस मामले के लॉर्ड्स को पद के बजाय 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का उपयोग करके दंडित किया जा सकता है।
पूरा मामला क्या है?
यह मामला सुनील कुमार सिंह द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए “पलटूराम” शब्द का प्रयोग था। सिंह ने तर्क दिया कि उनके एक सहयोगी-सटीरी ने भी यही शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन उन्हें केवल दो दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया था, जबकि उन्हें स्थायी रूप से हटा दिया गया था। उन्होंने इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया और कहा कि उन्हें कोई संबंधित वीडियो रिकॉर्डिंग प्रदान नहीं की गई, न ही घरों में अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया।
विधान परिषद की दस्तावेज़ें
विधान परिषद ने तर्क दिया कि सिंह को पहले भी उनके अनुचित व्यवहार के लिए निलंबित कर दिया गया था। काउंसिल का कहना था कि अगर वे समिति की बैठकों में शामिल होते हैं, तो उन्हें वीडियो दिखाया जाता है। साथ ही, उन्होंने राजा राम पाल केस का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट को सानुपातिकता में पासपोर्ट की सजा नहीं दी जानी चाहिए।
सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणी
समीक्षा के दौरान काउंसिल ने कहा कि “पलटूराम” शब्द के अलावा सिंह ने मुख्यमंत्री का कैरिकेचर भी बनाया था। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने
मुलायम-फुल्के अंदाज में कमेंट करते हुए लिखा, ”राजनीति में कॉमिक ऐसे ही काम करता है।” लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि “विरोध करते समय भी सम्मान बनाए रखना जरूरी है।”
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