नई दिल्ली। 1990 से पहले मौर्य,कुशवाहा,शाक्य और सैनी सिर्फ एक वोटर के तौर पर जाने जाते थे। लेकिन मंडल कमीशन को लागू करने के लिये छिड़े आन्दोलन के बाद ये समाज राजनीतिक रुप से बहुत तेज गति से जागरुक हुआ है। यूपी की राजनीति में मायावती ने इस समाज को आगे बढ़ने का ज्यादा मौका दिया। उसके बाद यूपी की राजनीति में इस समाज के प्रतिनीधियों की संख्या बढ़ती गई। समाजवादी पार्टी ने भी इनकी ताकत को देखते हुए बड़े पैमाने पर इन्हें टिकट दिये, जो जीतकर विधानसभा और लोकसभा पहुंचे। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव तक बीजेपी भी मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी जातियों की ताकत को पहचान चुकी थी। इसीलिये 2017 में बीजेपी ने भी इन जातियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में टिकट दिये। जिसके फलस्वरुप मौर्य, कुशवाहा,शाक्य, सैनी समाज के 15 विधायक चुनकर आये थे। लेकिन बीजेपी ने इनके वोट पर सरकार तो बना ली, लेकिन मंत्रीमंडल में उतनी तवज्जो नहीं दी, जितनी मिलनी चाहिये थी। केशव प्रसाद मौर्य, जो कि मुख्यमंत्री बनने की रेस में थे….उन्हें किनारे कर दिया गया। 2017 से लेकर 2022 तक योगी जी के शासनकाल में केशव प्रसाद मौर्य को हमेशा कमजोर बनाये रखा गया। उनको कोई बड़ा निर्णय लेने का अधिकार नहीं था। 2022 का चुनाव नजदीक आते हीं जब के पी मौर्या से सीएम पद के चेहरे के बारे में पूछा जाता था तब वो वही बोलते रहे कि कमल के फूल पर चुनाव लड़ा जायेगा……बीजेपी संगठन ने उनकी नाराजगी भांपते हुए उन्हें मनाने की बड़ी कोशिश की, अमितशाह और सीएम योगी उन्हें मनाने उनके लखनऊ स्थित घर भी गये…..के पी मौर्या मान भी गये। लेकिन तबतक बीजेपी को मौर्य, कुशवाहा,शाक्य, सैनी वोटरों की ताकत का अंदाजा हो गया था।
10 मार्च 2022 को यूपी का आने वाला रिजल्ट मौर्य, कुशवाहा,शाक्य, सैनी समाज की दिशा और दशा तय करने वाला होगा । हालांकि अभी के पी मौर्य, स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबुसिंह कुशवाहा, केशवदेव मौर्य और धर्मसिंह सैनी अलग अलग पार्टीयों का भले हीं साथ दे रहे हैं, लेकिन इस चुनाव में ये समाज अपनी ताकत का लोहा मनवा चुका है। भविष्य में अब जो भी चुनाव होंगे, उसमें इस समाज को उचित प्रतिनिधित्व और अधिकार देना सभी दलों की मजबूरी होगी।
रिपोर्ट- धर्मेन्द्र कु. सिंह