मसूरी, उत्तराखंड। मसूरी में तिब्बती व भोटिया जनजाति समुदाय का नये साल का पर्व लोसर धूमधाम मनाया गया। तीन दिनों तक चलने वाले इस पर्व को लेकर इस समुदाय के लोगों में खासा उत्साह देखा गया। तिब्बती समुदाय के लोगों ने बौद्ध मंदिर में भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना कर भगवान बुद्ध से विश्व शांति की कामना की। इस मौके पर मसूरी में तिब्बती समुदाय के लोग सुबह के समय मसूरी के दलाई हिल पहुंचे। जहां पर पारंपरिक झण्डी बांधकर पूजा अर्चना कर पुराने साल की विदाई व नये साल का जोरदार तरीके से स्वागत किया गया।
इस मौके पर लोगो ने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर नये साल की शुभकामनाएं दी। तिब्बती समुदाय की कैलसेंग डोलमा और चौनडीयम रिनछन ने बताया कि तिब्बती कैलेंडर के अनुसार भी यह वर्ष के पहले महीने का पहला दिन होता है। विश्व में जहां कहीं भी बौद्ध लोग बसे हुए हैं वहां यह पर्व मनाया जाता है। लोसर का अर्थ नया साल होता है। लो यानिकृवर्ष, सरकृनया जो मिलकर बनता है नव वर्ष।
लोसर का इतिहास बताता है कि यह तिब्बत के नवें काजा पयूड गंगयाल के समय वार्षिक बौद्धिक त्योहार के रूप में मनाया गया पर एक अंतराल लेकर यह पारंपरिक फसली त्योहार में बदल गया। वह एक ऐसा दौर था जब तिब्बत में खेत की जुताई की कला विकसित हुई साथ ही सिंचाई व्यवस्था और पुलों का विकास भी हुआ। बाद में लोसर को ज्योतिषीय आधार देकर इसे नव वर्ष के रूप में मनाया जाने लगा। उन्होने बताया कि तिब्बतियों में एक आम कहावत है लोसर इज लोसर जिसका अर्थ है नया साल नया काम।
इस पर्व के मुख्य व्यंजनों में ताजा जौ का सत्तू, फेईमार ग्रोमां, ब्राससिल, लोफूड तथा छांग हैं। इस दिन घरों की साफ सफाई करते हैं तथा रंग रोगन कर घरों को सजाते हैं। उन्होने बताया कि रसोई की दीवारों पर एक या आठ शुभ प्रतीक बनाए जाते हैं तथा घरेलू बर्तनों के मुंह ऊन के धागों से बांध दिए जाते हैं। रोचक बात यह है कि इस दिन छोटी-मोटी दुर्घटनाओं को तिब्बती लोग शुभ मानते हैं। उन्होने बताया कि अपने घरों में यह समारोह समाप्त होने पर लोग तशीदेलेक कहते हुए पड़ोसियों के घरों में जाते हैं और लोसर की बधाई देते हैं। कुछ स्थानों पर यह त्योहार एक सप्ताह तक चलता है पर आम तौर पर तीन दिन तक ही चलता है। कुछ लोग इस दिन शादी रचाना भी शुभ मानते हैं।
रिपोर्ट- सुनील सोनकर