Sikkim: लेक के उपर बादल फटा,टूटा झील ऐसे आई सिक्किम में तबाही

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Sikkim: सिक्किम में जो अचानक बाढ़ आई है उसकी कहानी कुछ केदारनाथ धाम में 2013 में आई तबाही जैसी ही है। उत्तरी सिक्किम में जिला है मंगन, मंगन ऊंचाई वाला इलाका है चुंगथांग है चुंगथांग हिमालय में बना है साउथ ल्होनेक लेक। यह एक झील है जो ल्होनेक लेक ग्लेशियर पर बनी है। यानी कि यह एक ग्लेशियर लेक है इसे ग्लेशियर लेकर ऊपर बदलते तेज गति से पानी गिरा तेज बहाव और दबाव से लेक की दीवारें टूट गई।

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Sikkim: ऊंचाई पर होने की वजह से पानी तेजी से निचले इलाकों में भाकर गया तीस्ता नदी उत्थान पर आ गई। यह ग्लेशियर 17100 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है। करीब 260 फीट गहरी 1.98 किलोमीटर लंबी और आधा किलोमीटर चौड़े वर्ग किलोमीटर में फैली है।

आप सोचिए जरा इस झील से जब पानी नीचे आया होगा तब वह अपने साथ ढेर सारा मालवा और पत्थर लेकर नीचे आया हरे रंग में दिखने वाली तीस्ता नदी पीले और मटमैले रंग में बहने लगी। साउथ लोगों ने हिमालय क्षेत्र के उन 14 ग्लेशियर लेक में से एक है जिनके फटने का खतरा पहले से ही था ।इस झील को ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड के प्रति बेहद संवेदनशील बताया गया था इस झील का क्षेत्रफल लगातार बढ़ता जा रहा था क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से लेक ग्लेशियर पिघलता जा रहा था ।पिघलते ग्लेशियर से निकला पानी इसी झील में जमा हो रहा था ।

4 अक्टूबर को जब इसके ऊपर बादल फटा तो झील की दीवारें टूट गई। उत्तरी सिक्किम में झील के फटने की वजह से तीस्ता का पानी बढ़ गया ।इस वजह से ना केवल सिक्किम दो मोहनी में खाली गंज और बांग्लादेश का कुछ इलाका प्रभावित हो सकता है।

मौसम विभाग ऑरेंज अलर्ट जारी कर दिया गया है। इसी साल मार्च में केंद्र सरकार ने संसद में एक डरावनी रिपोर्ट भी पेश की थी रिपोर्ट में बताया गया था कि हिमालय के ग्लेशियर अलग-अलग दर से तेजी से पिघल रहे हैं। साथ ही यह भी माना गया की जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय की नदियां किसी भी समय प्राकृतिक आपदाएं बन सकती है। यानी कि कश्मीर से लेकर उत्तर पूर्वी राज्यों तक हिमालय में आप बता सकती है।संसद की स्टैंडिंग कमेटी जांच पड़ताल कर रही थी कि देश में ग्लेशियरों का प्रबंध कैसे हो रहा है अचानक बाहर से लाने वाले ग्लेशियर लेक आउट पोस्ट को लेकिन क्या तैयारी है खासतौर से हिमालय के इलाकों में या रिपोर्ट 29 मार्च 2023 को लोकसभा में पेश किया गया था नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने बताया कि जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ग्लेशियरों के पिघलने के स्टडी कर रही है लगातार ग्लेशियर पर नजर रखी जा रही है 9 बड़े ग्लेशियर का अध्ययन हो रहा है जबकि 76 ग्लेशियरों के बढ़ने या घटना पर भी नजर रखी जा रही है सरकार ने माना कि ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों के बहाव में अंतर तो आएगा ही साथ ही कई तरह की आप दाएं भी आ सकती है ग्लेशियर एवं लच हिमस्खलन आदि जैसे केदारनाथ और चमोली में हुए हादसे थे इसकी वजह से नदियां और ग्लेशियर अगर हिमालय से खत्म हो गए तो पहाड़ों पर पेड़ों के नसों और फलों पर असर पड़ेगा साथी उन पदों साथियों पौधों का व्यवहार बदलेगा जो पानी की कमी से जूझ रहे हैं लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की वजह से हिमालय कैसे घटते जा रहे हैं।

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