नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में गवाहों पर कथित हमले की शिकायत को बुधवार को गंभीरता से लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की इलाहाबाद उच्च न्यायालय से मिली जमानत रद्द करने की मांग वाली दायर याचिका पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने मृतक किसानों के परिजनों की ओर से मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने की मांग वाली विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई के बाद सरकार को नोटिस जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया। सर्वोच्च अदालत इस मामले में अगली सुनवाई 24 मार्च को करेगी। याचिकाकर्ताओं- मृतक किसानों के परिजनों के वकील प्रशांत भूषण ने शीर्ष अदालत बताया कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में एक गवाह पर गत गुरुवार रात को वहां हमला किया गया था। याचिकाकर्ताओं का यह.भी आरोप है कि आरोपियों की ओर से गवाहों को प्रभावित करने करने के प्रयास किए जा रहे हैं। गवाहों को धमकाया जा रहा है। शीघ्र सुनवाई की गुहार लगाते हुए श्री भूषण ने आरोप लगाते हुए कहा था कि राज्य में भारतीय जनता पाटर्ी की सरकार लौटने के बाद अब अभियुक्तों की ओर से धमकी दी जा रही है। श्री भूषण ने कहा कि ऐसे हालात में गवाहों और याचिकाकर्ताओं के लिए नई चुनौती खड़ी हो गई है। मुख्य आरोपी आशीष के अलावा अन्य आरोपी भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जमानत लेने की कोशिश कर रहे हैं।
केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के पुत्र आशीष को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 10 फरवरी को जमानत दी थी। किसानों के परिजनों की ओर से श्री भूषण ने आशीष की जमानत रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। श्री भूषण ने चार, 11और 15 मार्च को याचिका पर शीघ्र सुनवाई की गुहार लगाई थी। तब मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले पर उपयुक्त पीठ के समक्ष सुनवाई करने का निर्देश दिया था। मृतक किसानों के परिजनों का नेतृत्व कर रहे जगजीत सिंह की ओर से अधिवक्ता श्री भूषण ने फरवरी में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा आशीष को जमानत दिए जाने को कानूनी प्रक्रिया एवं न्याय की अनदेखी करार दिया है। श्री भूषण से कुछ दिन पहले, अधिवक्ता सी एस पांडा और शिव कुमार त्रिपाठी ने भी आशीष की जमानत के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में पिछले साल तीन अक्टूबर को कथित रूप से आशीष की कार से कुचलकर चार किसानों की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद भड़की हिंसा में दो भाजपा कार्यकर्ताओं के अलावा कार चालक एवं एक पत्रकार की मृत्यु हो गई थी। घटना के मामले में वकील श्री पांडा एवं श्री त्रिपाठी ने जनहित याचिका के साथ पिछले साल शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। तब अदालत ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन के नेतृत्व में पूरे मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित की थी।
किसानों के परिजनों की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने 10 फरवरी के अपने आदेश में आशीष को जमानत देने में ‘अनुचित और मनमाने ढंग से विवेक का इस्तेमाल’किया। किसानों के परिजनों की याचिका में दावा किया गया है कि उन्हें कई आवश्यक दस्तावेज उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाने से रोका गया था। उनके वकील को 18 जनवरी 2022 को वर्चुअल सुनवाई से तकनीकी कारणों से‘डिस्कनेक्ट’कर दिया गया तथा इस संबंध में अदालत के कर्मचारियों को बार-बार फोन कर संपकर् करने की कोशिश की गई लेकिन कॉल कनेक्ट नहीं हो पाया था। इस तरह से मृतक किसानों के परिजनों की याचिका प्रभावी सुनवाई किए बिना खारिज कर दी गई थी। जगजीत सिंह के नेतृत्व में दायर याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने की वजहों में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आशीष की जमानत के खिलाफ अपील दायर नहीं करना भी एक कारण है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उत्तर प्रदेश में उसी दल की सरकार है, जिस दल की सरकार में आरोपी आशीष के पिता अजय मिश्रा केंद्र में राज्य मंत्री हैं। शायद इसी वजह से उत्तर प्रदेश सरकार ने आशीष की जमानत के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर नहीं की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उच्च न्यायालय अपराध की जघन्य प्रकृति पर विचार करने में विफल रहा। उनका कहना है कि गवाहों के संदर्भ में आरोपी की स्थिति उसके न्याय से भागने, अपराध को दोहराने, गवाहों के साथ छेड़छाड़ और न्याय के रास्ते में बाधा डालने की संभावनाओं से भरा पड़ा है। आशीष को उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले साल नौ अक्टूबर को तीन अक्टूबर की हिंसक घटना से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया था। फरवरी में वह जमानत पर जेल से रिहा कर दिया गया। तीन अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लखीमपुर खीरी के एक कार्यक्रम का विरोध करने के दौरान हिंसक घटनाएं हुई थी। ये किसान केंद्र के तत्कालीन तीन कृषि कानूनों (अब रद्द कर दिए गए) के खिलाफ लंबे समय से आंदोलन कर रहे थे।
रिपोर्ट- आलोक वर्मा