देश के प्रति समर्पण की भावना रखने वाले मोदी की कार्यशैली का लोहा दुनिया के देश मान रही है : चुग
अमृतसर
भाजपा के राष्ट्रिय महासचिव तरुण चुघ ने पीसीसी अध्यक्ष नवजोत सिद्धू पर तंज कसते हुए कहा है की उनका तथाकथित पंजाब मॉडल केवल पंजाबियों को गुमराह करने वाला था।विधान सभा चुनाव में मतदान हो जाने के बाद कॉंग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिद्धू रूस-यूक्रेन के युद्ध में फंसे सैंकड़ों पंजाबी नोजवानो के लिए हमदर्दी का एक शब्द तक नहीं कहा है,उसने स्पष्ट कर दिया है सिद्धू को केवल कुर्सी की भूख है। उनका राजनतिक जीवन सत्ता प्राप्ति के लिए है। जब भी प्रदेश की जनता विशेष कर नोजवानो के हित में आवाज बुलंद करने की जरूरत होती है,’सिद्धूबाणी’ खामोश हो जाती है।
यूक्रेन में फंसे स्टूडेंट्स को युद्ध के बीच निकालने एक लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में चार केंद्रीय मंत्रियों के साथ-साथ एयर इंडिया,भारतीय वायु सेना के साथ कई निजी हवाई कंपनियों ने मजबूत संकल्प के साथ युवाओं को उनके घर तक पहुंचाया है,इस इस बात का घोतक है की केंद्र सरकार इस संवेदनशील मामले के प्रति बहुत गंभीर है।बेहतर होता सिद्धू यूक्रेन में फंसे नौजवान साथियों के लिए सिद्धूबाणी से दो शब्द उनके होंसले को बढ़ाने के लिए कहते।दुःख इस बात का है की पंजाब मॉडल को लेकर बड़े-बड़े दावे करने वाले सिद्धू की डिक्शनरी में मुसीबत में फंसे पंजाबियों के लिए दो शब्दों का भी अकाल पड़ गया है।
चुनाव प्रचार के दौरान सिद्धू ने जिस प्रकार कटुता व नफ़रत की भाषा भोली है वह उनके राजनतिक जीवन का हिस्सा रहा है।अब तो कांग्रेस पार्टी के सीनियर नेता सांसद मनीष तिवारी ने भी इस मुद्दे पर कोंग्रेसी नेताओं की छुपी को कटघरे में खा कर दिया है। ऐसा लगता है की हार का भय इन कांग्रेसी नेताओं के दिल-दिमाग में गहरा असर दाल रहा है जिस कारण वह खामोश हो गए है।कोरोना कालखंड में भी सिद्धू पंजाबियों को अपने हालात में छोड़ गए थे।
चुघ के अनुसार कोरोना वायरस के दौरान भी नवजोत सिद्धू अपनी कोठी में बंद हो गए थे।उन्होंने अपनी विधान सभा हलके के लोगों की सुध तक नहीं ली थी। यह आरोप खुद कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने सिद्धू पर लगाए।ज सचुनाव प्रचार के दौरान सिद्धू की बीएस से उत्तर गए।
चुघ ने कहा की नवजोत सिद्धू का अब तक का राजनितिक जीवन प्रपंच से भरा पडा है।नवजोत सिद्धू को पंजाब व पंजाबियों की फ़िक्र नहीं है।जब वह भाजपा में थे तब भी उनकी लड़ाई लोगों के जीवन को बेहतर करने की नहीं,बल्कि बड़े पद को लेकर थी।चुनाव के बाद सिद्धू की ख़ामोशी उनकी संभावित हार को बयान तो नहीं कर रहे है।