Uniform Civil Code: भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) एक ऐसा मुद्दा है जिस पर हमेशा से बहस होती रही है. जाने हमारे इस आर्टिकल में क्या है इतिहास
Uniform Civil Code
उत्तराखंड भारत का पहला राज्य बन गया है, जहां समान नागरिक संहिता (UCC) लागू की जाएगी. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की इस घोषणा के पीछे उनका कहना है कि UCC से राज्य में समानता आएगी और सभी नागरिकों को समान अधिकार और जिम्मेदारियां मिलेंगी, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय से हों. समान नागरिक संहिता को लेकर काफी बातें हुई हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं बाबा साहेब अंबेडकर लाना चाहते थे समान नागरिक संहिता
क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) एक ऐसा प्रस्ताव है, जिसका उद्देश्य विवाह, तलाक, संपत्ति अधिकार, वारिस, और गोद लेने से जुड़ी विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों को समान बनाना है. इसका मुख्य उद्देश्य समानता लाना और यह सुनिश्चित करना है कि सभी नागरिक एक ही कानून के तहत चलें.
उद्देश्य हर धर्म, रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों को सभी के लिए एकसमान करना है। इसका मतलब है सभी धर्म, जाति, पंथ और लिंग के लोगों के लिए भारत में विवाह, तलाक, गोद लेने और विरासत के मसलों के नियम एकजैसे होंगे।
ब्रिटिश राज में हुआ था सबसे पहले जिक्र
यूसीसी का जिक्र मोदी सरकार से भी पहले हो चुका है। दरअसल, 1835 में ही ब्रिटिश सरकार ने अपराधों, सबूतों और कई अन्य विषयों पर समान नागरिक कानून लागू करने की बात कही थी। हालांकि, उस रिपोर्ट में हिंदू या मुस्लिम धार्मिक कानून को बदलने को लेकर कोई बात नहीं थी।
अबेडकर ने भी की थी चर्चा
डॉ॰ भीमराव अंबेडकर ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर चर्चा की थी. 1948 में संविधान सभा कि बैठक में अंबेडकर ने यूसीसी को भविष्य के लिए अहम बताया था. अंबेडकर के मुताबिक, यूसीसी को वैकल्पिक होना चाहिए और इसे लागू करने के लिए राज्य तत्काल बाध्य नहीं हैं. संविधान सभा की बहस के दौरान अम्बेडकर ने कहा था
आजादी के बाद शाह बानो केस में UCC का जिक्र
देश आजाद होने के बाद यूसीसी का जिक्र उस समय हुआ जब तीन तलाक का एक मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। दरअसल, ये चर्चित शाह बानो केस है, जिसमें इंदौर के एक वकील ने उन्हें तीन तलाक दे दिया था।
शाह बानो का निकाह छोटी उम्र में ही 1932 हो गया था और उसके 5 बच्चे थे। इस बीच 14 साल बाद उसके पति अहमद खान ने दूसरा निकाह कर लिया।
शाह बानो पहले तो अपने पति के साथ रह रही थी, लेकिन बाद में दोनों में झगड़ा हुआ तो दोनों ने समझौता कर अलग होने का फैसला किया। समझौते के तहत शाह बानो को उसके पति ने 200 रुपये देने थे, लेकिन बाद में वो मुकर गया।
ऐसे सुप्रीम कोर्ट पहुंचा केस
गुजारा भत्ता न दिए जाने के 62 साल बाद शाह बानो ने इंदौर के एक अदालत का रुख किया। अदालत में पति ने मुस्लिम लॉ बोर्ड का हवाला देते हुए कहा कि वो गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने उसे 20 रुपये देने का निर्देश दिया।
इतने कम पैसों से शाह बानो का घर नहीं चल पा रहा था, इसके चलते उनसे बाद में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जहां हाई कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला सुनाते हुए पति को 179 रुपये देने का आदेश दिया।
हाई कोर्ट के फैसले से जब पति संतुष्ट नहीं हुआ तो वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और उसने हाई कोर्ट के फैसले को पलटने की मांग की। हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने 1985 में हाई कोर्ट के फैसले को सही करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने के बाद एक बड़ी टिप्पणी भी की। कोर्ट ने कहा कि देश में अब समान नागरिक संहिता की जरूरत महसूस हो रही है।
UCC का इसलिए हो रहा विरोध
दरअसल, यूसीसी लागू होने को मुस्लिम समुदाय उनके धर्म में दखल देना मान रहे हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि शरीयत के तहत मुस्लिमों के लिए कानून अलग है और इसमें महिलाओं को संरक्षण दिया गया है, इसलिए यूसीसी की जरूरत नहीं है। उनका मानना है कि यूसीसी से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का वजूद खतरे में पड़ जाएगा।
समान नागरिक संहिता को लागू करना भाजपा के प्रमुख वादों में से एक था और उत्तराखंड से इस वादे के पूरा होने की शुरुआत हो गई है. 2022 के विधानसभा चुनावों में ये एक बड़ा मुद्दा था.
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