Uttarpradesh News: उपज और गुणवत्ता में सुधार की रणनीतियों और शोध प्राथमिकताओं पर होगी राष्ट्रीय संगोष्ठी
Uttarpradesh News
आईसीएआर से संबद्ध सीआईएसएच 21 सितंबर को करेगा आयोजन
लखनऊ: 19 सितंबर
आम यूं ही खास है। तभी तो इसे फलों का राजा कहते हैं। उत्तर भारत सहित उत्तर प्रदेश का आम और खास बने, इस बाबत 21 सितंबर को देश और विदेश के नामचीन वैज्ञानिक इस पर चर्चा करेंगे।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) से संबद्ध सीआईएसएच (केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान) रहमानखेड़ा 21 सितंबर को करेगा। गोष्ठी का विषय होगा, ‘आम की उपज और गुणवत्ता में सुधार की रणनीतियों और शोध प्राथमिकताएं।’
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक टी. दामोदरन के अनुसार आम दुनिया के उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और विशेष रूप से एशिया के प्रमुख फलों में से एक है। भारत आम का सबसे बड़ा उत्पादक है। दुनिया के 58.3 मिलियन मीट्रिक टन आम उत्पादन में से लगभग 24.7 मिलियन मीट्रिक टन की हिस्सेदारी भारत की ही है। भारत, दुनिया को ताजे आमों का एक प्रमुख निर्यातक भी है। भारत ने वर्ष 2022-23 के दौरान 48.53 मिलियन डॉलर मूल्य के 22963.76 मीट्रिक टन ताजे आमों का निर्यात किया है।
आम को और लोकप्रिय बनाने के लिए योगी सरकार द्वारा की गई पहल
योगी सरकार की पहल से इस साल पहली बार अमेरिका को आम का निर्यात हुआ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का लगातार प्रयास है कि उत्तर प्रदेश का आम और खास बने। यूपी की आम प्रजातियों को लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार बड़े पैमाने पर हर साल आम महोत्सव का भी आयोजन करती है। आम के नए बाग लगाने और पुराने बागों के जीर्णोद्धार पर सरकार प्रति हेक्टेयर की दर से एक तय अनुदान भी देती है। जीर्णोद्धार (कैनोपी प्रबंधन) में आने वाली अड़चनों को दूर करने के लिए सरकार कुछ महीने पहले शासनादेश भी जारी कर चुकी है।
आम के उत्पादन में यूपी नंबर वन
देश में उत्तर प्रदेश एक प्रमुख आम उत्पादक राज्य है। देश के कुल उत्पादन का लगभग 23.6% आम यूपी में होता है। इसके बाद आंध्र प्रदेश (22.99%) का स्थान है। भारत में आम की विविधता बहुत अधिक है। भारत में आम की लगभग 1000 किस्में हैं। हालांकि इनमें से लगभग 20 किस्में ही व्यापार और निर्यात व्यवसाय में प्रमुखता रखती हैं। भारतीय आम की किस्मों में स्वाद, सुगंध, खाने की गुणवत्ता, रूप और अन्य जैव सक्रिय यौगिकों में बहुत अधिक विविधता होती है।
आम की फसल पर सामयिक रोगों के साथ अप्रत्याशित मौसम का भी असर
आम लाखों किसानों, बागवानों के लिए आजीविका का स्रोत है। पर भारत मे आम की औसत राष्ट्रीय उत्पादकता, दुनिया की औसत आम उत्पादकता की तुलना में काफी कम है। इसकी कई वजहें हैं। मसलन झुलसा रोग, एन्थ्रेक्नोज, फल मक्खी, थ्रिप्स, हॉपर आदि का प्रकोप, अत्यधिक तापमान, अनियमित वर्षा, पाला, लवणीय और क्षारीय मिट्टी आदि। अनियमित और अप्रत्याशित मौसमी घटनाएं भी आम के वानस्पतिक विकास, फूल और फल लगने, फलों की वृद्धि, फलों की गुणवत्ता और उपज को प्रभावित करती हैं।
उच्च गुणवत्ता की रोपण सामग्री और प्रबंधन की कमी का भी उपज तथा गुणवत्ता पर असर
उच्च गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री की अनुपलब्धता, प्रशिक्षण और छंटाई प्रथाओं की कमी, उच्च घनत्व वाले बागों की कमी, दोषपूर्ण बाग प्रबंधन, शारीरिक विकार, पारंपरिक आम की किस्मों का विलुप्त होना जैसी अन्य समस्याएं भी भारतीय आम उत्पादकता के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।
आम पर काम करने वाली संस्थाओं ने 70 से अधिक प्रजातियां विकसित की हैं
भारत में विभिन्न संस्थानों द्वारा आम की 70 से अधिक संकर या उन्नत किस्में जारी की गई हैं। इनमें से केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से सीआईएसएच-अंबिका, सीआईएसएच-अरुणिका, अवध समृद्धि और अवध मधुरिमा नाम की प्रजातियां विकसित की गई हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली ने पूसा अरुणिमा, पूसा सूर्या, पूसा प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ, पूसा पीताम्बर, पूसा लालिमा, पूसा दीपशिखा, पूसा मनोहारी प्रजाति का विकास किया है। जबकि आईसीएआर-भारतीय बागवानी शोध संस्थान, बेंगलुरु ने अर्का सुप्रभात, अर्का अनमोल, अर्का उदय, अर्का पुनीत, अर्का अरुणा, अर्का नीलाचल केसरी प्रजाति विकसित की है। हालांकि भौगोलिक-विशिष्ट आवश्यकताओं के कारण देश में एक दर्जन से अधिक संकर/उन्नत किस्में व्यावसायिक रूप से नहीं उगाई जाती हैं। अधिकांश विकसित संकर/सुधारित किस्मों में रंग, गुणवत्ता या उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लिए बहुत विशिष्ट जलवायु संबंधी आवश्यकताएं होती हैं, जिसके कारण वे पूरे देश में बहुत लोकप्रिय नहीं हैं।
यह कार्यक्रम आईसीएआर, नई दिल्ली के उप महानिदेशक (बागवानी) डॉ. संजय कुमार सिंह के नेतृत्व में आयोजित किया जाएगा। डॉ. एके सिंह, कुलपति, चंद्रशेखर आजाद कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, (कानपुर) कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे। इनके अलावा डॉ. केबी कठीरिया, कुलपति, आनंद कृषि विश्वविद्यालय, आनंद (गुजरात), डा. एन. के सिंह, राष्ट्रीय प्रोफेसर, आईसीएआर (एनआईपीबी, नई दिल्ली) डॉ. एस. राजन, पूर्व निदेशक, (आईसीएआर-सीआईएसएच, लखनऊ) डॉ. एमआर दिनेश, पूर्व निदेशक, आईआईएचआर विभिन्न तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता और सह-अध्यक्षता करेंगे।
आम पर शोध करने वाले देश, विदेश के शोधार्थियों को एक मंच प्रदान करेगी ये गोष्ठी
यह कार्यक्रम देश और विदेश के आम पर देश विदेश की नामचीन संस्थाओं में शोध करने वालों के लिए एक मंच प्रदान करेगा। इसमें डॉ. नटाली डिलन, सीनियर बायोटेक्नोलॉजिस्ट और डॉ. इयान एस.ई. बल्ली, सीनियर बागवानी विशेषज्ञ क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया, डॉ. युवल कोहेन, वोल्केनी इंस्टीट्यूट, एआरओ, इज़राइल के शोधकर्ता, डॉ. वी.बी. पटेल, सहायक महानिदेशक, आईसीएआर, नई दिल्ली, डॉ. एम. शंकरन, प्रभागाध्यक्ष और डॉ प्रकाश पाटिल, परियोजना समन्वयक (एआईसीआरपी) आईआईएचआर, बेंगलुरु आदि अपनी प्रस्तुतियां देंगे।
गोष्ठी में इन विषयों पर होगी चर्चा
🔹 नियमित फलत, उच्च पैदावार, आकर्षक फल रंग, लंबी शैल्फ-लाइफ, व्यापक अनुकूलनशीलता और जलवायु लचीलापन के लिए आम की किस्मों का प्रजनन।
🔹 लवणता सहिष्णुता और बौनेपन के लिए मूलवृंत प्रजनन।
🔹 जीनोमिक चयन और तेज प्रजनन दृष्टिकोण का उपयोग करके सटीक प्रजनन।
🔹 उन्नत आम की किस्मों/संकर किस्मों का क्लोनल और हाफ-सिब चयन।
🔹मैंगीफेरा की संबंधित प्रजातियों से प्राकृतिक जीनों का दोहन।
🔹विरासत, किसानों, पारंपरिक और जीआई किस्मों का खेत पर संरक्षण आदि।
इसे भी पढ़े:-One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन लागू हुआ तो बिहार उत्तर प्रदेश समेत 22 राज्यों में बदल जाएगा सियासी गेम